Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 10
________________ पाठी थे ४४ ११ हू ४४ २० पाठ कथे ४५ ३ हो गये ९ सूत्रो परिभाष्य ४६ ३ जीसमें ७ वनवाइ बनवाइ होगये सूत्रोपरिभाष्य जिसमें वनवाई वनवाई ४८ १८ स्थावर स्थविर २० हारीयमा लागारी ५१ १७ आर्यज्यंत ५४ ८ शत्रुज्य हारीयमालागारि आर्यजयंत शत्रुजय , १३ कोरंटन ५६ ६ मुलसंघ , १६ बहु तही ५७ १ (५७) ५८ १५ मूलश्रुद्धि ६१ ७ गुरूभाइ ६२ १२ श्री जिनलाभसरि १९ मुनिचंद्रमुरिके : २० निकला ६७ ४ नहीं . ७१४ यहा सें कोरंट मूलसंघ बहुतही (५७) (४०) मूलशुद्धि गुरुभाइ श्री जिनलाभरि मुनिचंद्रसूरिके निकालानही अंगी यहांसें RA

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