Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 9
________________ बोलपुरका शान्तिनिकेन ब्रह्मचर्याश्रम। ५१५ पंक्तिमें बैठकर भोजन नहीं कर सकते हैं उनके लिए स्वतंत्र प्रबन्ध कर दिया जाता है । कई विद्यार्थी हाथसे भी भोजन बनाते हैं। गरज यह कि खानेपीनेके विषयमें किसी पर कोई दबाब नहीं डाला जाता है। १२ बजे दिनसे लेकर २ बजे तक विश्रान्तिका समय है। इस समय बहुतसे विद्यार्थी बगीचेके पेड़ोंको सींचतें हैं, उनके बीचमें . उगी हुई घासको हटा देते हैं और क्यारियोंको ठीक करते हैं। कई मस्त होकर गाते हैं और कई आनन्दसे खेलते कूदते धूम मचाते हैं । अभिप्राय यह कि इस समय वे सब तरहसे स्वतंत्र होते हैं; उनके आनन्दमें किसी तरहकी रुकावट नहीं डाली जाती है। हाँ, अध्यापकगण देखरेख अवश्य रखते हैं जिससे वे किसी तरहका अनुचित कार्य न कर सकें और न दिनमें सो सकें। दिनका सोना बहुत ही हानिकर है। - मौखिक शिक्षा-छोटे छोटे विद्यार्थियोंको चरित्रगठन करनेवाली अच्छी अच्छी मनोरंजक कथायें सुनाई जाती हैं और उनसे पूछा जाता है कि इस कथासे तुम क्या समझे । बड़ी उम्रके विद्यार्थियोंके सामने अध्यापक लोग किसी एक विषयको पेश करते हैं और उस पर उनकी राय माँगते हैं। इससे उनकी विचारशक्ति बढ़ती है। वे भले बुरेका निर्णय अपने आप करने लगते हैं और कार्य करनेका स्वतंत्र मार्ग निश्चय कर सकते हैं। ... सारे विद्यार्थी आद्यविभाग, मध्यविभाग और शिशुविभाग ऐसे तीन विभागोंमें विभक्त हैं। प्रत्येक विभागमें देखरेख रखनेके लिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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