Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 66
________________ ५७२ था। अस ग्रन्थनिसहनी, जैनहितैषी__ . बिलकुल नये ग्रन्थ । ___ अष्टसहस्री। न्यायका प्रसिद्ध ग्रन्थ विद्यानन्दस्वामी विरचित। तीन चार वर्षसे छप रहा था। अभी हालही छपकर तैयार हुआ है। विद्वानोंके कामकी चीज़ है।शहरोंके मन्दिरोंके भंडारमें अवश्य रखना चाहिए। जो भाई संस्कृत नहीं जानते, वे इसे भाषाका समझकर न मँगा लेवें। मूल्य तीन रुपया। श्रावकधर्मसंग्रह। लगभग २५-३० श्रावकाचारके-ग्रन्थोंके आधारसे पं० दरयावसिहजी सेििधयाने इसकी रचना की है । निर्णयसागरमें सुन्दरतासे छपा है । श्रावकाचारसम्बन्धी तमाम बातों पर इसमें प्रकाश डाला गया है । भाषा सबके समझने योग्य है । अगस्तके अन्ततक रवाना हो सकेगा । मूल्य जिल्दका २१) सादीका २) रुपया । पंचमंगल अर्थसहित ।। - जैनपाठशालाओंमें पढाये जानेके लिए यह पुस्तक तैयार कराई गई है। पहले मंगलपाठ, फिर कठिन कठिन शब्दोंके अर्थ, फिर सरल भावार्थ, इसके बाद प्रश्नावली, इस क्रमसे तैयार किया गया है। प्रत्येक मंगलके अन्तमें उसका सार भाग भी दे दिया है। अर्थ कई विद्वानोंकी सम्मतिसे लिखा गया है । मूल्य तीन आना। ... सागारधमामृत भाषाटीकासहित । - इस प्रसिद्ध श्रावकचारकी टीका पं० लालारामजीने सरल हिन्दीमें की है। इसमें ऐसी बींसों बातें मिलेंगी जो और श्रावकाचारोंमें नहीं पाई जाती हैं। मूल्य १॥) रु० मैनेजर, जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, . . हीराबाग पो० गिरगांव-बम्बई. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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