Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 65
________________ विविध प्रसंग। ५७१ ma आगे विषय कषायके लंपटी इटायेवाले कहते है आलूखानेका अष्टमी १४ को हरीखानेका उपदेश देवो ब्रह्मजी कहते है सर्वजातिके साथ शामिल बैठके भोजन करनेका उपदेश करो कोइ उन्मार्गपंथी कहते हे सम्यक्तीको सप्तव्यसनके सेवनका उपदेश करो मे इनका उलटा उपदेश करता हूं इस सववसे उनका कलदार मारा जाता है मिती द्वितिय वैसाखवदी १ ___L. Chand. __५ सेठीजीका मामला। पं० अर्जुनलालजी सेठीको एक वर्षसे अधिक हो गया, पर उनके कष्टका अन्त नहीं आया। इस विषयमें सहयोगी प्रतापने एक बहुत अच्छा नोट किया है। वह लिखता है " यह आश्चर्यकी बात है कि अर्जुनलालजी एक वर्षसे उसी प्रकार जेलमें सड़ रहे हैं पर उनके विषयमें कुछ भी प्रकट नहीं किया जाता । हमारी दृष्टिसे तो ज्यों ज्यों समय बीतता जाता है-त्यों त्यों उन्हें हर प्रकार पूर्ण निर्दोष मान लेनेमें हमारी हिचकिचाहट दूर होती जा रही है। यदि वे निर्दोष न होते तो जयपुर इतनी नपुंसकता कभी प्रकट न कर सकता कि बारबार चुनौती दिये जाने पर भी वह चुप रहता और उनका कोई दोष सिद्ध न करता । हम अधिक कालतक इस सन्देहमें भी नहीं रह सकते कि उसकी चुप्पी अत्याचारका दूसरा रूप नहीं है और अत्याचारीकी चुप्पी उसकी कायरताके सिवा और कुछ भी नहीं होती । हाँ, भारतसरकार भी कुछ नहीं सुनती । और हम नहीं जानते कि वह अपने इस मौनका कौनसा नैतिक कारण बतला सकती है।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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