Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 14
________________ ५२० जैनहितैषी करनेके लिए स्थापित हुई हमारी धार्मिक संस्थाओं से क्या किसी एक भी संस्थाके लड़कोंने दुःखसे छटपटाते हुए अपने भाइयोंको सहारा देकर बचाया है ? .. यदि कोई व्यक्ति आश्रम देखने या अन्य किसी हेतुसे जाता है तो विद्यार्थी उसकी बड़ी मेहमानवाज़ी करते हैं, बड़ी ही नम्रता व प्रेमसे उससे वार्तालाप करते हैं जिससे उसका मन बड़ा ही प्रसन्न होता है और वह यही चाहता है कि इस आश्रमके लड़कोंकी तन मन और धनसे सेवा करें। ... आश्रमका यह बहुत ही संक्षिप्त परिचय है । जो महाशय इस विषयमें अधिक जानना चाहें वे. श्रीयुक्त बाबू जगदानन्दरायसे पत्रव्यवहार करें। कृष्णलालवर्मा । - नोट-क्या ही अच्छा हो यदि हमारे जैनसमाजके भी चार छह लड़के इस आश्रममें जाकर रहें और विद्याध्ययन करें। आश्रममें ऐसी कोई बात नहीं है जिससे जैनविद्यार्थी वहाँ न रहसके। उनके चरित्रमें और भोजनपानादिमें किसी तरहकी हीनता नहीं आसकती। उनके विश्वास भी वहाँ सुरक्षित रहेंगे। यदि धनी सज्जन दोचार वृत्तियाँ नियत करदें तो अनेक असमर्थ विद्यार्थी वहाँ जानेके लिए तैयार हो सकते हैं । यह जानकर पाठक प्रसन्न होंगे कि श्रीयुत पं० अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. के पुत्र चिरंजीवि प्रकाशचन्द्र उक्त आश्रममें भरती होगये हैं। सम्पादक। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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