Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 27
________________ करनी और कथनीसुन्दरी । rraimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmer लिखना तो साक्षात् सरस्वतीके लिए भी कठिन ! कोई पहले व्यभिचारी, कोकेनखोर, आबारा था, पीछे जैनसमाजमें ढोंगकी पूजा देखकर ब्रह्मचारी बन गया और अब कुछ पढ़े लिखोंको फुसलाकर उनकी शिफारिशसे ऐश्वर्यशाली भट्टारक बनकर पुज रहा है ! इधर ब्रह्मचर्यका उपदेश देता है और उधर · मेरी भक्ति और गुरुकी शक्ति ' से सन्तानवृद्धिके कार्यमें सहायता करता है ! 'कोई नारि मुई घर संपति नासी, मूड मुड़ाय भये संन्यासी' के अनुसार ब्रह्मचारी क्षुल्लक ऐलक आदिके विविध वेष बनाकर चारों उँगली घीमें तर रखते हैं और भोले भक्तोंसे रुपये ऐंठकर अपने कुटुम्बको सहायता पहुँचाते हैं। कोई परम समयसारी अध्यात्मी बनकर शुद्ध आत्मस्वरूपका उपदेश दिया करता है, मूल्से पैर पुजवाता है और न्यायशास्त्र पढ़नेके बहाने काशी जाकर अपनी चेलियोंको कृतार्थ करता है ! कोई शुद्धाम्नायियोंका पण्डितशिरोमणि बनकर प्रतिष्ठायें करवाता है, प्रतिमाओंको पास करनेकी दलाली खाता है, माँगकर धमकाकर -येन केन प्रकारेण हजारों रुपयोंका हाथ करता है और नीचसे नीच काम करनेसे भी बाज़ नहीं आता है। कोई मूर्खसमाजको नदी, पहाड़, देश, पत्थर, मिट्टी, चूल्हा, चक्कीके नाम सुनाकर रिझाताहै और बुढापेमें भी जवानीका श्रृंगार और नजाकत बनाकर अपने पुराने पुण्यकर्मोंकी याद दिलाता है। कोई समाजका लीडर बनता है और किसी नगरनारिका घर पवित्र करते समय जूते खाकर भागता है। इस तरहके अनेक आशक कथनीसुन्दरीको इस २५ वी शताब्दिमें मिल रहे हैं जिससे उसके घरका द्वार सदा खुला रहता है और सेज सजी हुई रहती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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