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पुस्तक-परिचय। wwwmwww हिन्दू बने रहनेकी अपेक्षा मुसलमान ईसाई आदि बन जानेमें बहुत सुख और प्रतिष्ठाकी प्राप्ति होती है । जिस 'नमः शूद्र'का हम आज स्पर्श नहीं कर सकते हैं कल उसके ईसाई बन जाने पर हम उससे प्रेमके साथ सेकहेन्ड करने लगते हैं। दूसरा कारण यह है कि अहिन्दुओंमें विवाह बड़ी उम्रमें होते हैं जिससे उनमें बलवान् और दीर्घजीवी सन्तान उत्पन्न होती है। तीसरे, उनमें विधवाविवाह जायज है और इस कारण उनमें विधवाओंकी संख्या कम रहती है। बंगालमें हिन्दुओंमें फी सदी ४८ विधवायें हैं परन्तु मुसलमानोंमें ३८ ही हैं । चौथा कारण हिन्दुओंकी शारीरिक निर्बलता है। नीच जातिके हिन्दुओंमें शराब, गांजा, चंडू आदिका प्रचार बहुत ही ज्यादा है परन्तु मुसलमानोंमें यह बहुत ही कम है। मुसलमानोंमें पारस्परिक प्रेम और धर्मप्रेम भी हिन्दुओंकी अपेक्षा बहुत अधिक है । इत्यादि और भी अनेक कारण हिन्दुओंकी समीपवर्ती मृत्युके विषयमें बतलाये गये हैं, जो हिन्दुओंके समान जैनोंके भी विचारने योग्य हैं। क्योंकि जैन भी हिन्दुओंके ही अन्तर्गत हैं। लेखकने अस्पृश्य जातियोंको ऊपर उठानेके लिए उनकी गिरी हुई दशा सुधारनेके लिए बहुत जोर दिया है और कहा है कि इसके बिना हिन्दू जाति मौतके पंजेसे बच नहीं सकती। ___ मोक्षमार्गनिरूपण-यह २६ पृष्ठकी छोटीसी पुस्तिका सागर हाईस्कूलके रिटायर्ड और सेठ तिलोकचन्द जैन हाईस्कूलके वर्तमान . हेडमास्टर राय साहब नानकचन्दनी बी. ए. की लिखी हुई है। हाईस्कूलके धार्मिक पठनक्रमकी पूर्तिके लिए इसकी
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