Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ ५६४ जैनहितैषी विविध प्रसङ्ग। १ सेठीजी पर एक और अन्याय! सेठीजी पर जयपुर राज्यकी ओरसे एक अन्याय तो हो ही रहा था कि अब उनपर एक दूसरा अन्याय होना शुरू हुआ है। यह दूसरा अन्याय और किसीकी ओरसे नहीं, स्वयं जैनसमाजके कुछ लोगोंकी आरसे-और सो भी धर्मात्माओंकी ओरस होने लगा है । यदि पहला अन्याय राज्यमदान्धताका परिणाम है तो दूसरा कट्टर धर्मान्धताका । पहलेकी अपेक्षा दूसरा अन्याय और भी अधिक कष्टकर है । कारण, यह उन लोगोंके द्वारा हो रहा है जो सारे संसारको क्षमा, दया, समताका पाठ पढ़ानेवाले उसी जैनधर्मके जानकार समझे जाते हैं जिसका कि प्रचार करनेके लिए सेठीजीने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया था। इन अन्यायोंसे बचनेका कोई उपाय भी नहीं दिखलाई देता । जब बारी ही खेतको खाने लगी तब खेतकी रक्षाकी आशा ही क्या की जा सकती है ! राजा प्रजाकी रक्षाके लिए है। परन्तु आज वह अपना कर्तव्य भूल रहा है। धर्म-जीव मात्रको अपनी शान्तिप्रद छायाके नीचे रखनेवाला उदार धर्म-आज इतनी संकीर्ण हो गया है कि अपनी एक छोटीसी परिधिके बाहरके तमाम लोगों पर घृणा और तिरस्कारकी बौछार करता हुआ उनकी रक्षा करना तो दूर रहा. उनकी भलाईके मार्गमें काटे बिछाता है । इस तरह राजा और धर्म दोनोंकी ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72