Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ विविध प्रसंग। mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm विरुद्ध गति देखकर सिवाय इसके और क्या कहा जा सकता है कि सेठीजी; अब रहीम चुप लै रहो, समुझि दिननको फेर। जब दिन नीके आय हैं, बनत न लागे बेर॥ २ मरेको मारे शाह मदार। जिस समय सेठीजी स्वतंत्र थे, उनकी लेखनी और उनकी जिह्वा स्वाधीन थी, उस समय मालूम नहीं इन धर्मात्मा सज्जनोंकी यह बहादुरी कहाँ जा छुपी थी जो इस समय उनपर लगातार कठिन प्रहार कर रही है ! उस समय सत्यवादी भी था, उसके वर्तमान सम्पादक तथा उचितवक्ता नामधारी लेखक भी थे और सत्यवादीको छोड़कर विचार प्रकाशित करनेके दूसरे साधनोंकी भी कमी न थी। फिर मालूम नहीं यह सारा जोश जो आज एकाएक उबल आया है उस समय क्यों शान्त हो रहा था । सेठीजी जिस पंथके आज करार दिये गये हैं, गिरिफ्तार होनेके पहले भी वे उसी पंथके थे । उनके द्वारा जैनसमाजके श्रद्धानके बिगड़नेका-. मिथ्यात्वकी वृद्धि हो जानेका-जो डर आज इन धर्मात्माओंके सामने मुहँ फाड़ रहा है, उनकी मुक्त अवस्थामें वह इससे भी अधिक भयावना था । क्योंकि उस समय वे अपने विचारोंका खूब स्वाधीनताके साथ प्रचार करते थे, अपने विद्यालयके सैकड़ों लड़कोंको शिक्षा देते थे और सुयोग्य समझे जाकर इन्दोरके जैन हाईस्कूलके संचालक चुन लिये गये थे । बात बातमें मिथ्यात्वकी छायासे डरनेवाले हमारे समाजके धर्मात्मा महाशयोंने यदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72