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जैनसिद्धान्तभास्कर ।
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इनका नाम आया है। पर ऐसी छोटी छोटी बातोंतक बड़े सम्पादकोंकी दृष्टि क्यों पहुँचने लगी ! इसी सम्बन्धमें आपने गणितसारसंग्रहके कुछ मंगलाचरणके श्लोक और उनका अर्थ दिया है । अर्थ पढ़ने ही योग्य है । क्या मजाल जो आपकी समझमें कुछ भी आजाय ! किसी ऐसे महात्मासे अर्थ लिखवा लिया गया है जो विवेकसे और जैनधर्मसे सर्वथा ही अपरिचित है | मंगलाचरणमें जितने विशेषण हैं वे सब जिनेन्द्रदेव और राजा अमोघवर्ष दोनों में घटित होते हैं, पर इसको समझे कौन ? इसके लिए बुद्धि और परिश्रम दोनों चाहिए ।
आगे एक जगह लिखा है कि “ जिनसेनस्वामीने कई स्थानोंमें बौद्धोंको पराजित करके विजयकी डंका बजाई थी । " पर इसके लिए कोई प्रमाण ? केवल आपके कहने से यह मान लिया जाय ? जिनसेनस्वामीकी जिस प्रकृतिका परिचय उनके ग्रन्थोंसे मिलता है, वह तो वादविवादमें किसीको पराजित करनेवाली नहीं मालूम होती है । अमोघवर्ष महाराजने अन्तमें विवेकपूर्वक राज्य छोड़ दिया था, इसके लिए तो प्रमाण हैं; परन्तु वे मुनि हो गये थे, इसका सम्पादक महाशयके पास क्या प्रमाण है ? अकालवर्ष गुणभद्रको अपना गुरु मानते थे, इसका प्रमाण भी आत्मानुशासनकी टीकापरसे उद्धृत करना चाहिए था ।
· आगामी अकसे भास्करके २ - ३ अंककी समालोचना शुरू होगी।
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