Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 55
________________ जैनसिद्धान्तभास्कर। परिचयवाले लेखकी अन्य निरर्थक बातोंकी आलोचनाकी आवश्यकता नहीं जान पड़ती । इसके आगे दो तीन छोटे छोटे लेखोंके बाद · अमोघवर्ष और उनके समयके आचार्य' शीर्षक लेख है। यह लेख विशेषतः अँगरेजी लेखोंके आधारसे लिखा गया है; कहीं कहीं जैनहितैषीके लेखकी भी छाया ली गई है। इसमें भी सम्पादक महाशयने जितनी बातें निजकी बुद्धिसे लिखी हैं, वे सब ऊँटपटांग हैं । डा० भाण्डारकरने राष्ट्रकूट या राठौरोंको द्रविड़ जातिकी एक कृषक जाति बतलाया है; पर यह आपको पसन्द नहीं । आप उन्हें 'सर्वमान्य सर्वोच्च क्षत्रियवंशीय' मानते हैं। खेद इतना ही है कि बडे बडे विशेषणविशिष्ट शब्दोंके लिखनेके सिवाय इस विषयमें आप कोई पुष्ट प्रमाण नहीं देते हैं। आप कहते हैं कि गोविन्द तृतीयकी पुत्रीका ब्याह बंगनरेश धर्मपालसे और अकालवर्षका हैहयवंशी चेदिनरेशसे हुआ था, इस कारण वे क्षत्रिय थे । परन्तु क्षत्रियोंको लड़की देने या उनकी लड़की लेनेसे कोई क्षत्रिय नहीं हो जाता है । इस विषयमें यहाँके राजा लोग प्रायः स्वतंत्र हे हैं । यहाँतक कि शक और म्लेच्छ राजाओंके साथ भी यहाँके राजाओंका सम्बन्ध होता रहा है । बहुतसे विदेशी राजा यहाँ राज्य स्थापित करके कुछ समयके बाद क्षत्रियोंमें ही परिगणित होने लगे थे । कनिष्क हुबिष्क आदि ऐसे ही राजाओंमेंसे थे । यह असंभव नहीं है कि राष्ट्रकूट लोग पहले द्रविड़ जातीय रहे हों और फिर अपने बढ़ते हुए अपरिमित बल और वैभवके कारण क्षत्रियोंमें गिने जाने लगे हों; साथ ही शिला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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