Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 54
________________ जैनहितैषी महाशयकी जिन विन्सेंट स्मिथ सा० पर अगाध श्रद्धा हैं उन्होंने भी लिखा है कि ई० सन्के पहले १००० वर्षों में जैनधर्म वहाँका मुख्य धर्म रहा है। यह ठीक है कि उस समय वहाँ बौद्धधर्म भी प्रचलित था और जैनधर्मके साथ उसके वादविवाद भी होते होंगे; परन्तु वह इस योग्य न था कि जैनधर्म पर किसी तरहका अत्याचार कर सके । इसके सिवाय बौद्धधर्मका इतिहास इस तरहके अत्याचारोंसे बहुत ही कम कलङ्कित है । ग्रन्थ जलाना या मन्दिर तोड़ना, यह उसकी नीति न थी । इतिहास. ज्ञताका दम भरनेवाले एक सम्पादककी कलमसे इस प्रकारकी बेलगाम बातें न निकलना चाहिए। उसे प्रत्येक शब्दको सोचसमझकर प्रमाणसहित लिखना चाहिए। आगे इसी तरहकी एक बात फीरोजशाह तुगलकके दरबार में नैनगुरुओंके रहने लगनेके विषयमें लिखी है; परन्तु उसके लिए भी कोई प्रमाण नहीं दिया गया है । टिप्पणीमें यह प्रतिज्ञा के गई है कि कोल्हापुरके भण्डारमें उस समयकी जो बादशाही सनदे हैं वे आगेके किसी अंकमें प्रकाशित की जायँगी। परन्तु तीन वर्ष आधिक हो गये, अबतक भी उनके प्रकाशित होनेका मुहूर्त नहीं आया है और शायद कभी आयगा भी नहीं । भास्करके तीनों अं. कोंमें इस तरहकी बीसों प्रतिज्ञायें आपको मिलेंगी; परन्तु हमारी समझमें वे केवल मौका टाल देनेके लिए और अपनी बहुज्ञता बतलानेके लिए लिखी जाती हैं । चलते पुर्ने नये सम्पादकोंको आपका यह नया हथखंडा अवश्य सीख लेना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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