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जनहितैषी
(३) बहुत सा एकने तो धन कमाया,
सकल दारिद्रको उसने भगाया। . न खोया दूसरेने कुछ, न पाया, बचा निज मूलधन वह लौट आया।
(४) न पूछो तीसरेका हाल भाई,
निजी पूँजी सभी उसने गँवाई । कही है बात यह लौकिक यहाँपर, मगर तुम धर्मपर देखो घटाकर ॥
(५) मनुजका मूलधन नर-जन्म मानो,
मिला यदि मोक्ष, तो तुम लाभ जानो। वृथा जो मूलधनको हैं गँवाते, सदा तिर्यंच गति या नरक पाते ।
-संशोधक।
जैनसिद्धांतभास्कर।
(समालोचना)
जिनसेन और गुणभद्रके लेखके बाद कोई ६ पेजमें श्रुतस्कन्ध
यंत्रका परिचय है। पहले एक कविता है जो निरी तुकबन्दी है। शायद उसके रचयिता स्वयं ही नहीं जानते हैं कि श्रुतस्कंध क्या चीज़ है; पर साहसकी बात है कि उसका परिचय दूसरोंको कराने चले हैं। परिचयके गद्यलेखको पढ़कर भी कोई यह नहीं जान सकत
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