Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 50
________________ ५५६ जैनहितैषी (१८) रत्नकरण्ड और आयितवर्मा। मिस्टर बी. लेविस राइस साहबने अपनी 'इन्स्क्रिप्शन्सऐट श्रवणबेल्गोला' नामक पुस्तककी भूमिकामें रत्नकरण्ड श्रावकाचारके, सल्लेखनासम्बन्धी, उपसर्गे दुर्भिक्षे........' इत्यादि सात श्लोकोंको उद्धृत किया है और इस रत्नकरण्डको 'आयितवा' का बनाया हुआ लिखा है-( Ratna Karandaka a work by Ayita varmma ) । आयितवा कौन थे और कत्र हुए, इसका कुछ उल्लेख नहीं किया । परन्तु आगे चलकर स्वामी समन्तभद्रका उल्लेख करते हुए उन्हें, ‘राजावलीकथे' के आधारपर, 'रत्नकरण्ड' का कर्ता बतलाया है और लिखा है कि उन्होंने पुनर्दीक्षा लेनेके पश्चात् इस ग्रंथका सम्पादन किया है। संभव है कि 'आयितवर्मा' समन्तभद्रका ही नामान्तर हो। यदि ऐसा हुआ तो यह भी समन्तभद्रके क्षत्रियत्वका द्योतक हो सकता है। विद्वानोंको रत्नकरण्डकी प्राचीन प्रतियोंपरसे तथा समन्तभद्र स्वामीसे पीछेके बने हुए ग्रंथादिकोंके उल्लेखवाक्योंपरमे इस विषयका अच्छी तरहसे निर्णय करना चाहिए। स्वामी समन्तभद्र पदद्धिक थे । "जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय' नामक ग्रंथके निम्न श्लोकसे प्रगट होता है कि मूलसंघरूपी आकाशके चंद्रमा स्वामी समन्तभद्राचार्य 'पदर्द्धिक' थे, अर्थात् चारणऋद्धिके धारक थे: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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