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इतिहास प्रसङ्ग।
सोऽयं समस्तजगदूर्जितचारुकीर्तिः। स्याद्वादशासनरमाश्रतशुद्धकीर्तिः ॥ जीयादशेषकविराजकचक्रवर्ती।
श्रीहस्तिमल्ल इति विश्रुतपुण्यमूर्तिः॥” १७ ॥ इस ग्रंथमें हस्तिमल्लके बाद गुणवीरसूरि और फिर उनके शिष्य पुष्पसेन मुनिका उल्लेख करके, ग्रंथकर्ता पं० अय्यपार्यने अपने पिता 'करुणाकर' को पुष्पसेन मुनिका गृहस्थ शिष्य बतलाया है । इससे मालूम होताहै कि विक्रम संवत् १३७६ (अय्यपार्यके अस्तित्वकाल) से अर्थात् ईसवी सन १३१९ से थोड़े ही वर्ष पहले हस्तिमल्ल कवि मौजूद थे। और इसलिए 'कर्णाटक-जैन-कवि ' नामक पुस्तकके रचयिताने हस्तिमल्लका जो समय ई० सन १२९० बतलाया है वह प्रायः ठीक जान पड़ता है । बहुत संभव है कि आदिपुराणका कर्ता हस्तिमल्ल और विक्रान्तकौरवीय नाटकादिकका कर्ता हस्तिमल्ल, दोनों एक ही व्यक्ति हो । उक्त आदिपुराणके देखनेसे इसका भले प्रकार निर्णय हो सकता है । हस्तिमल्ल गृहस्थ विद्वान् थे, ऐसा नेमिचंद्रकृत ' प्रतिष्ठातिलक' नामक ग्रंथकी प्रशस्तिके निम्नलिखित श्लोकसे विदित होता है:
"परवादिहस्तिनां सिंहो हस्तिमल्लस्तदुद्भवः। गृहाश्रमीबभूवाहच्छासनादिप्रभावकः ॥” १३॥ अंजनापवनंजय नाटकके अन्तमें जो प्रशस्ति दी है और जिसका उल्लेख जैनहितैषीके पिछले खास अंकमें सम्पादक द्वारा किया गया है उसकी लेखनप्रणालीसे भी हस्तिमल्ल कविका गृहस्थ होना पाया जाता है।
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