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इतिहास-प्रसङ्ग।
" शाकाब्देविधुवाधिनत्रहिमगौ सिद्धार्थसंवत्सरे । माघे मासि विशुद्धपक्षदशमीपुष्पर्क्षवारेऽहनि ॥ ग्रंथो रुद्रकुमारराज्यविषये जैनेन्द्रकल्याणभाकू । संपूर्णो भवदेकशैलनगरे श्रीपालवन्धूर्जितः" ॥ ३५॥ इस ग्रंथमें लेखकने वीराचार्य आदिके साथ एकसधिभट्टारककाभी उल्लेख निम्नप्रकारसे किया है:
“वीराचार्यसुपूज्यपादजिनसेनाचार्यसंभाषितो. यः पूर्व गुणभद्दसूरिवसुनन्दीन्द्रादिनन्थूर्जितः॥ यश्चाशाधरहस्तिमलकथितो यश्चैकसंधिस्ततः।। तेभ्यः स्वाहृत्सारमध्यरचितः स्याज्जैनपूजाक्रमः"॥१-१९॥ इससे प्रकट है कि 'जिनसंहिता ' के कर्ता एकसीधभट्टारक विक्रम संवत् १३७६ से पहले हो चुके हैं। बहुत संभव है कि वे पं०
आशाधरजीके समकालीन. १३ वीं शताब्दीमें या उनसे भी कुछ पीछे हुए हों।
(१७) हस्तिमल्ल कविके समयादिकी चर्चा । विक्रान्तकौरवीय नाटकादिकके कर्ता हस्तिमल्ल कवि विक्रम् संवत् १३७६ से पहले हो चुके हैं। क्योंकि शक संवत् १२४ १ . में बनकर समाप्त हुए · जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय' नामके ग्रंथमें उनके नामादिकका बहुत कुछ उल्लेख पाया जाता है। हस्तिमल्लके पिताका नाम गोविन्द भट्ट था। गोविन्द भट्ट ' देवागमसूत्र' को पाकर उसके सहारेसे सम्यग्दृष्टि ( जैन ) हो गया था। श्री कुमार, सत्यवाक्य, देवरवल्लभ, उदयभूषण और वर्धमान हस्तिमल्लके आई थे । ये सब कवि थे, दाक्षिणात्य थे तथा गोविंदभट्टको स्वर्ण
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