Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 51
________________ नर-जन्म। ५५७ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwrammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm xwwwinwww " श्रीमूलसंघव्योमेन्दुर्भारते भावितीर्थकृद्देशे समन्तभद्रार्यो जीयात्प्राप्तपदद्धिकः ॥ ३०-२" ॥ इस श्लोकमें यह भी बतलाया है कि समन्तभद्रस्वामी आगेको इस भारतवर्षमें तीर्थकर होंगे । नहीं कह सकते कि ग्रंथकर्ताका यह कथन कहाँ तक सत्य है और किस आधारपर अवलम्बित है; परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि उस वक्त ( शक सं. १२४१ ) के जैनोंका ऐसा विश्वास जरूर था । और ये सब बातें स्वामी समन्तभद्रके असाधारण महत्त्वकी सूचक हैं।। जुगलकिशोर मुख्तार। नरजन्म। .. (१) उदयमें तीन मित्रोंके समाई, चले परदेशको करने कमाई। पुनः धन साथमें अपने लिये वे, . कहीं व्यापार करने चल दिये वे ॥ (२) ठिकाने पर पहुँच वे सब गये जब, किया हरएकने धंधा शुरू तब । . . रहे व्यापार करते कुछ समय सब, हुआ परिणाम क्या सुन लीजिए अब ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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