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इतिहास-प्रसङ्ग।
कल्लाणे वरणयरे सत्तसए पंच उत्तरे जादे।
जावणियसंघभावो सिरिकलसादो हु सेवडदो ॥ ३०॥ अर्थात् विक्रमकी मृत्युके ७०५ वर्ष बाद कल्याण नगरमें श्रीकलश नामक सेवड या श्वेताम्बरसे यापनीयसंघकी उत्पत्ति हुई । इससे यह भी निश्चय हो जाता है कि शाकटायन विक्रम मृत्युके ७०५ वर्षवाद किसी समयमें हुए हैं । लेखकके अनुमानकी अपेक्षा यह समय लगभग दो सौ वर्ष पीछे और भी हट कर राजा अमोघवर्षके समीप-जिसके स्मरणार्थ शाकटायनकी टीका अमोघवृत्ति बनी है-पहुँच जाता है ।
पाल्यकीर्ति कौन थे ? पार्श्वनाथकाव्यको उत्थानिकामें कवि वादिराजसूरिने लिखा है:कुतस्त्या तस्य सा शक्तिः पाल्यकीर्तेर्महौजसः । श्रीपदश्रवणं यस्य शाब्दिकान्कुरुते जनान् ॥ अर्थात् उस महातेजस्वी पाल्यकीर्तिकी शक्तिका क्या वर्णन किया जाय कि जिसके श्रीपदके सुनते ही लोग शाब्दिक या व्याकरणज्ञ हो जाते हैं।
इससे मालूम होता है कि पाल्यकीर्ति कोई बड़े भारी वैयाकरण थे; परन्तु उनके विषयमें हम कुछ भी नहीं जानते हैं । अब शाकटायनप्रक्रियाके मंगलाचरणको और देखिए:
मुनीन्द्रमभिवन्याहं पाल्यकीति जिनेश्वरम् ॥ मन्दबुद्धयनुरोधेन प्रक्रियासंग्रहं बुवे ॥
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