Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 39
________________ इतिहास-प्रसङ्ग। ५४५ इतिहास-प्रसङ्ग। ( गताङ्कसे आगे) चिंतामणि-चिन्तामणि काव्य । मल्लिपेण प्रशस्तिमें चिन्तामणि काव्यके प्रणेता चिन्तामणि मुनिका उल्लेख मिलता है:-- धर्मार्थकामपरिनिवृतिचारुचिन्तश्चिन्तामाणः प्रतिनिकतमकारि येन । स स्तूयते सरससौख्यभुजा सुजात. श्चिन्तामणि निवृषा न कथं जनेन ॥ एक जगह और लिखा है___ कृत्वा चिन्तामणि काव्यमभीष्टार्थसमर्थनम् । चिन्तामणिरभून्नाम्ना भव्यचिन्तामणिर्गुरुः ॥ एक विद्वान्का कथन है कि यह · चिन्तामणि काव्य 'तामिल भाषाका ग्रन्थ है और तामिल साहित्यमें बहुत ही प्रसिद्ध है। यह मालूम नहीं हुआ कि इसके निर्माण होनेका समय क्या है । श्रीवर्धदेव-चूडामणि काव्य । चूड़ामणिः कवीनां चूड़ामणिसेव्यकाव्यकविः । श्रीवर्धदेव एव हि कृतपुण्यः कीर्तिमाहर्तुम् ॥ मल्लिषेणप्रशस्तिके इस श्लोकसे मालूम होता है कि श्रीवर्धदेव कवि कवियोंके चूडामणि थे और उन्होंने चूडामणि नामका काव्य बनाया था। इनकी प्रशंसामें प्रसिद्ध संस्कृत कवि दण्डीने कहा थाः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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