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जैनहितैषी -
है । भाषा में अनेक त्रुटियाँ होनेपर भी वह पढ़नेवालों पर प्रभाव डालनेवाली है । लेखकके हृदयपर समाजकी दुर्दशाकी चोट है, इसकी साक्षी पुस्तकमें जगह जगह मिलती है । पुस्तक परोपकारके लिए ही लिखी भी गई है । लगभग १४० पृष्ठकी पुस्तकका मूल्य तीन आना बहुत कम है। ऐसी पुस्तकोंका जितना अधिक प्रचार हो उतना ही अच्छा । व्याहशादियोंके मौकों पर तो इस पुस्तककी दो दो सौ चार चार सौ प्रतियाँ अवश्य बाँटी जानी चाहिए ।
पुस्तकका नाम ठीक नहीं रक्खा गया। इससे तो 'शीलसंरक्षा' नाम ही अच्छा होता । लेखक के कई विचारोंसे हम सहमत नहीं । जैसे स्त्रियाँ यावनी भाषाओंके पढ़नेसे दुराचारिणी हो जाती हैं। किसी भाषा के पढ़नेसे कोई दुराचारी नहीं होता । बुरी पुस्तकें अवश्य ही चरित्रको बिगाड़ देती हैं; पर उनकी अँगरेज़ी उर्दू फारसीके समान हिन्दी संस्कृत प्राकृतमें भी कमी नहीं है ।
सर जोशुआ रेनाल्ड - यह मनोरंजन हिन्दी ग्रन्थमाला ग्वालियरकी नवीं पुस्तक है । इसके लेखक बाबू नवाबराय हैं । इसमें इंग्लेंडके प्रसिद्ध चित्रकार रेनाल्डका संक्षिप्त चरित और चित्रविद्यासम्बन्धी छोटा सा निबन्ध है । रेनाल्ड एक गरीब पादरीका लड़का था । उसने स्वाबलम्बनके बल पर किस तरह चित्र बनाना सीखा और अन्तमें वह किस तरह नामी चित्रकार बन गया, यह जानने के लिए और चित्रविद्या सम्बन्धी मोटी मोटी बातोंकी जानकारीके लिए यह पुस्तक अवश्य पढ़ना चाहिए। ८० पृष्ठकी पुस्तकका दाम पाँच आना अधिक है। मिलने का पता - गोपाल कृष्णमण्डली, लश्कर, ग्वालियर ।
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