Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 36
________________ जैनहितैषी - भी पूरी झलक है; शिक्षा, हिन्दू विश्वविद्यालय, शिवाजी, हिन्दी, राष्ट्रभाषा, इत्यादि लेखों द्वारा विविध प्रकारसे पाठकोंका मनोरंजन किया गया है और देशसेवा और उन्नति- उद्योगका उपदेश दिया गया है । " छपाई अच्छी है । ५४२ I जर्मनीके विधाता – ऊपरकी पुस्तक के प्रकाशक ही इसके प्रका शक हैं । जिन लोगोंके उद्योग और अध्यवसायसे जर्मनी संसारके पहली श्रेणी राज्यों में गिना जाने लगा है और जिनके कारण वह वर्तमान महाभारतमें प्रवृत्त हुआ है, उन २४ पुरुषोंके संक्षिप्त चरित इस पुस्तक में संगृहीत हैं । वर्तमान युद्धकी गति समझने में यह पुस्तक बहुत काम देगी । मूल्य चार आने । - 1 सार्वजनिक हित — इस पुस्तकके दूसरे और तीसरे दो भाग हमें प्राप्त हुए हैं। इसके लेखक श्रीयुत मुनि माणिकजी हैं। आप श्वेताम्बर साधु हैं। आपके हृदय में सार्वजनिक हितकी वासना बहुत प्रबल है । धार्मिक झगड़ों और वितण्डावादोंको छोड़कर आप निरन्तर इसी प्रयत्नमें रहते हैं कि जैन अजैन सबका हित कैसे हो । बहुत कम साधु आपके ढंगपर काम करने वाले हैं । आपके उद्योगसे यू. पी. में अनेक पुस्तकालय खुल गये हैं । दिगम्बर, श्वेताम्बर, वैष्णव आदि सभीको आप उपदेश दिया करते हैं । अभी अभी आपने कई पुस्तकें छपाकर अपने विचारोंका प्रचार करना शुरू कर दिया है । पुस्तकें सब सस्ते मूल्यपर बेची और बाँटी जाती हैं । इस पुस्तकमें प्रश्न और उत्तरके रूपमें आपने सैकड़ों हितकी बातें सरलता के साथ लिखी हैं जिनसे सभी लोग लाभ उठा सकते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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