Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 35
________________ पुस्तक- परिचय | जिनेन्द्र- पंचकल्याणक मंगल - लेखक और प्रकाशक, कुन्दनलाल जैन, चन्दाबाड़ी, गिरगाँव, बम्बई । मूल्य तीन आना । पाँ- ' ड़े रूपचन्दजीके बनाये हुए पंचमंगलका जैनसमाजमें सर्वत्र ही प्रचार है; परन्तु अभीतक इसकी कोई टीका प्रकाशित न हुई थी और इसकी कविता प्राचीन हिन्दीमें है, इस कारण इसका मर्म समझमें बहुत कठिनाई होती थी । अब इस टीकासे उक्त कठिनाई बहुत कुछ दूर हो जायगी । यह खास करके विद्यार्थियोंके लिए बनाई गई है । इसमें पहले पद्य, फिर उसके कठिन शब्दोंका अर्थ. फिर भावार्थ दिया गया है । इसके बाद प्रश्नावली दी है । प्रत्येक मंगलके अन्तमें उस मंगलका तात्पर्य भी दे दिया गया है। इसके तैयार करनेमें लेखक ने अच्छा परिश्रम किया है । छपाई सुन्दर है । ५४१ पद्य पुष्पाञ्जलि - - प्रकाशक, बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा बी. ए. पटकापुर, कानपुर । मूल्य आने। पं० लोचनप्रसादजी पाण्डेय हिन्दीके अच्छे कवि हैं । आपकी कवितायें हिन्दी के सामग्रिक पत्रोंमें अकसर प्रकाशित हुआ करती हैं । इस पुस्तकमें आपकी ४३ कविताओंका संग्रह है । इस संग्रह में भूमिकालेखक स्वर्गीय राय देवीप्रसादजी (पूर्ण) के शब्दोंमें " अनेक पद्योंसे देशहितका ललित राग गाया गया है, ईश्वरकी प्रार्थना देशभक्तिके भावसे परिपूरित है. गोजातिकी अवस्थापर करुणाका प्रकाश किया गया है, दुर्भिक्ष और दरिद्रताके सताये दीन भारतवासियोंके प्रति आर्द्र हृदयसे सहानुभूति दरमाई गई है, देशवासियोंकी अस्वस्थता पर भी विचार किया गया है, ' चीनी' सम्बन्धी पद्य में स्वदेशीकी ३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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