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जैनहितैषी
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। उक्त पुराणमें ही पद्मपुराणके कर्ता रविषणके वरांगचरित नामक ग्रन्थका उल्लेख किया है:
वरांगनेव सर्वांगैर्वरांगचरितार्थवाक् ।
कस्य नोत्पादये गाढमनुरागं स्वेगाचरम् ॥ वरांगचारत प्राप्य नहीं है।
शिवकोटि, शिवायन और समन्तभद्र । आदिपुराणके कर्ताके निम्नलिखित श्लोकसे मालूम होता है कि भगवती आराधनाके कर्ता शिवकोटिमुनि थे:
शीतीभूतं जगद्यस्य वाचाराध्यचतुष्टयम् ।
मोक्षमार्ग स पायान्नः शिवकोटिमुनीश्वरः॥ परन्तु, भगवतीआराधनाकी प्रशस्तिकी निम्न गाथाओंसे मालूम होता है कि उसे शिवार्य नामक आचार्यने रचा है:
अज जिणणंदि गाण सव्वगुत्त गाण अज्जमित्तणंदीणं । अवगमिय पादमूलं सम्म सुत्तं च अत्थं च ॥ पुवायरियाणबद्धा उपजीवित्ता इमा ससत्तीए। आराधणा सिवज्जेण पाणिदलभोजिणा रइदा ॥
अर्थात् आर्य जिननन्दि गणि, आर्य सर्वगप्तगाण और आर्य मित्रनन्दिके चरणोंके समीप बैठकर और भले प्रकार सूत्र और अर्थको समझकर, पाणिपात्रभोजी शिवार्यने, अपनी शक्तिके अनुसार इस ग्रन्थकी रचना की।
इससे जान पड़ता है कि शिवार्यका ही दूसरा नाम शिवकोटि होगा जिसका कि उल्लेख जिनसेन स्वामीने किया है और शायद शिवायन भी शिवार्यका ही एक रूप हो । परन्तु विक्रान्तकौरवीय नाटकके कर्ता-" शिष्यौ तदीयौ शिवकोटिनामा शिवायनः शास्त्र
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