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इतिहास-प्रसङ्ग |
आपका बनाया हुआ है जिसके देखनेका सौभाग्य हमें पं० कलापा भरमापा निटवेकी कृपासे प्राप्त हुआ है। इस ग्रंथके एक प्रकरण के अन्तमें लिखा है:
समस्त भुवनव्यापि यशसानन्तकीर्तिना । कृतेयमुज्ज्वला सिद्धिधर्मज्ञस्य निरर्गला ॥ अनन्तकीर्ति बहुत प्रसिद्ध और कीर्तिशाली नैयायिक जान पड़ते हैं । ये प्राचीन भी हैं । कमसे कम वादिराजसूरिसे - जो शककी दशवीं शताब्दिके विद्वान् हैं- पहले हैं ।
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वीरसेन —– सिद्धिभूपद्धति ।
वीरसेनस्वामी के विजयधवलटीकाके सिवाय एक ' सिद्धिभूपद्धति' नामक ग्रन्थका उल्लेख गुणभद्रस्वामीने उत्तरपुरामें किया है:
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सिद्धिभूपद्धतिर्यस्य टीकां संवीक्ष्य भिक्षुभिः । arted हेलयान्येषां विषमापि पदे पदे ॥
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महासेन - सुलोचनाकथा । हरिवंशपुराणकी भूमिका में जिनसेन कवि महासेनकी सुलोचना
कथाका इस प्रकार स्तुतिपाठ करते हैं:
महासेनस्य मधुरा शीलालङ्कारधारिणी । कथा न वर्णिता केन वनितेव सुलोचना ॥
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ये आचार्य हरिवंशकर्ता जिनसेनसे प्राचीन हैं । अन्यत्र कहीं इस कथाका उल्लेख नहीं देखा । अप्राप्य भी है ।
रविषेणाचार्य - वरांगचरित ।
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