SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इतिहास-प्रसङ्ग | आपका बनाया हुआ है जिसके देखनेका सौभाग्य हमें पं० कलापा भरमापा निटवेकी कृपासे प्राप्त हुआ है। इस ग्रंथके एक प्रकरण के अन्तमें लिखा है: समस्त भुवनव्यापि यशसानन्तकीर्तिना । कृतेयमुज्ज्वला सिद्धिधर्मज्ञस्य निरर्गला ॥ अनन्तकीर्ति बहुत प्रसिद्ध और कीर्तिशाली नैयायिक जान पड़ते हैं । ये प्राचीन भी हैं । कमसे कम वादिराजसूरिसे - जो शककी दशवीं शताब्दिके विद्वान् हैं- पहले हैं । 1 1 वीरसेन —– सिद्धिभूपद्धति । वीरसेनस्वामी के विजयधवलटीकाके सिवाय एक ' सिद्धिभूपद्धति' नामक ग्रन्थका उल्लेख गुणभद्रस्वामीने उत्तरपुरामें किया है: - सिद्धिभूपद्धतिर्यस्य टीकां संवीक्ष्य भिक्षुभिः । arted हेलयान्येषां विषमापि पदे पदे ॥ -- ५४७ महासेन - सुलोचनाकथा । हरिवंशपुराणकी भूमिका में जिनसेन कवि महासेनकी सुलोचना कथाका इस प्रकार स्तुतिपाठ करते हैं: महासेनस्य मधुरा शीलालङ्कारधारिणी । कथा न वर्णिता केन वनितेव सुलोचना ॥ Jain Education International ये आचार्य हरिवंशकर्ता जिनसेनसे प्राचीन हैं । अन्यत्र कहीं इस कथाका उल्लेख नहीं देखा । अप्राप्य भी है । रविषेणाचार्य - वरांगचरित । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy