Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ ५३२ जैनहितैषी कथनी तो जगत मजूरी, करनी है बंदी हजूरी, कथनी शक्कर सम मीठी, करनी अति लगै अनीठी॥क०॥४॥ जब करनीका घर पावै, कथनी तब गिनती आवैः अब ‘चिदानन्द' इम जोई, करनीकी सेज रहे साई॥क०॥५॥ -चिदानन्द । लीजिए, चिदानन्दजी महाराजने तो करनी कामिनीकी सज पसन्द कर ली ! बेचारी कथनी सुन्दरी पतिवियोगसे व्याकुल होने लगी और सेन सँवारकर परीक्षा करने लगी; परन्तु जब कोई चाहे तब ही न कोई उसकी राह लंगे: बहत ममय तक-बहुत वर्षों तक-गह देख देख कर-वियोगातपमें सन्तप्त हो होकर उसन अपने रूपको मिट्टीमें मिला दिया; आशा नहीं रही कि कभी काई भूला भटका भी उस राह आ निकलेगा । परन्तु एक बार घरक. दिन भी फिरते हैं । वीर भगवान्की २५ वी शताब्दिमें कथनी. सुन्दरीको एककी जगह अनेक आशक आ मिले ! जिस तरह इम वाचाल स्त्रीकी जीभके लिए शब्दोंकी कमी नहीं उसी तरह उसकी सेजके लिए अब आशकोंका भी टोटा नहीं रहा । एकाध आशकका स्थान खाली हुआ कि दूसरे सैकड़ों उम्मेदवारोंकी भीड तैयार है । ___ अन्देकी एक बार इच्छा हुई कि कथनीसुन्दरीके आशकार्की गिनती कर डालू-उनका नाम, उम्र, व्यापार, पहलेकी और पीछेकी स्थिति आदि सब बातोंका उल्लेख करनेवाली · डिरेक्टरी ' बना डायूँ । परन्तु बन्दा थोड़े ही समयमें निराश हो गया और इस तरहका प्रयास करना छोड़ बैठा । कारण, एक ता आशकोंकी मंग्या लिखना ही कठिन और फिर प्रत्येकके व्यापारादिका इतिहास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72