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जैनहितैषी
उधर चिदानन्दजीकी परिणीता पत्नी करनीसुन्दरीकी ओर कोई आँख उठाकर भी नहीं देख सकता है। क्योंकि सतीके एक ही पति रहता है। पापीजन उसकी इच्छा भी नहीं कर सकते हैं । इस - समय चिदानन्दजीका स्थूल या औदारिक शरीर इस लोकसे कूच कर गया है और उनकी प्रेयसी भी उनके पीछे 'सती' हो हो गई है। - अब तो कोई वीरजननी फिर दूसरी 'करनी' को जन्म दे, पालन पोषण करके बड़ी करे और उसे वैराग्यमें न पड़ने देकर किसी पतिकी धर्मपत्नी बनावे, तब कहीं काम चले । तब तक जो कुछ होता है सो देखा कीजिए और मीठी मिठाई सदृश कथनीसे मनकी मुरादें पूरी किया कीजिए। बोलो श्रीमती कथनी सुन्दरकी जय ! अखण्ड सौभाग्यवती कथनी देवीकी जय ! देवीके आशकोंकी जय ! निन्दकोंकी क्षय !
(जैनसमाचारसे कुछ परिवर्तन करके । )
श्रीमत्पैसापुराण। अथ उत्तरपुराणम् ।
(१) आ युर्वृद्धिर्यशोवृद्धिर्वृद्धिः प्रज्ञासुखश्रियाम् ।
धर्मसन्तानवृद्धिश्च धर्मात्सप्तापि वृद्धयः॥ ____ अर्थात्-आयुकी वृद्धि, यशकी वृद्धि, विद्याकी वृद्धि, लक्ष्मीकी वृद्धि, धर्म और सन्तानकी वृद्धि, ये सब वृद्धियाँ एक धर्मकी वृद्धिसे
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