Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 28
________________ ५१४ जैनहितैषी उधर चिदानन्दजीकी परिणीता पत्नी करनीसुन्दरीकी ओर कोई आँख उठाकर भी नहीं देख सकता है। क्योंकि सतीके एक ही पति रहता है। पापीजन उसकी इच्छा भी नहीं कर सकते हैं । इस - समय चिदानन्दजीका स्थूल या औदारिक शरीर इस लोकसे कूच कर गया है और उनकी प्रेयसी भी उनके पीछे 'सती' हो हो गई है। - अब तो कोई वीरजननी फिर दूसरी 'करनी' को जन्म दे, पालन पोषण करके बड़ी करे और उसे वैराग्यमें न पड़ने देकर किसी पतिकी धर्मपत्नी बनावे, तब कहीं काम चले । तब तक जो कुछ होता है सो देखा कीजिए और मीठी मिठाई सदृश कथनीसे मनकी मुरादें पूरी किया कीजिए। बोलो श्रीमती कथनी सुन्दरकी जय ! अखण्ड सौभाग्यवती कथनी देवीकी जय ! देवीके आशकोंकी जय ! निन्दकोंकी क्षय ! (जैनसमाचारसे कुछ परिवर्तन करके । ) श्रीमत्पैसापुराण। अथ उत्तरपुराणम् । (१) आ युर्वृद्धिर्यशोवृद्धिर्वृद्धिः प्रज्ञासुखश्रियाम् । धर्मसन्तानवृद्धिश्च धर्मात्सप्तापि वृद्धयः॥ ____ अर्थात्-आयुकी वृद्धि, यशकी वृद्धि, विद्याकी वृद्धि, लक्ष्मीकी वृद्धि, धर्म और सन्तानकी वृद्धि, ये सब वृद्धियाँ एक धर्मकी वृद्धिसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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