Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 16
________________ ५२२ जैनहितैषी मिलता है । मनुष्यकी वासनाओंको उत्तेजन देनेवाले और संयममें रखनेवाले उसके विचार ही हैं । कारण, मानसिकशरीर वासना शरीरकी अपेक्षा अधिक सूक्ष्म और उच्च होता है। इतना ही नहीं किन्तु कार्यवाहक स्थूल शरीरसे जिसे हम देखते हैं वह और भी सूक्ष्म और उच्च है। तुम्हारे विचारों पर तुम्हारे मित्रोंका भी आधार है। तुम अपने चारों ओर दृष्टि फेरो और देखो कि तुम्हारे मित्र किस किस प्रकारके हैं । ऐसा करनेसे भूतकालमें तुमने जो जो विचार किये हैं तुम्हें उनका स्मरण अधिकतासे हो सकता है। ___ यदि तुम्हारे मित्र सुंदरता शुद्धता और सत्यताको पसंद करनेवाले हों तो समझ लो कि अतीत कालमें तुमने अत्यंत सुन्दर शुद्ध और सत्य विचार किये हैं । इसमें बिलकुल .. संदेह नहीं | यदि तुम्हारा सम्बन्ध सदा ऐसे मनुष्योंसे रहता हो कि जिन्हें ठट्टा मसखरी करनेकी ही आदत पड़ी हुई है अथवा जिनके प्रत्येक शब्दमें या मुखकी आकृतिमें दिल्लगीकी ही आभा दीख पड़ती है तो इससे यह बात सिद्ध होती है कि भूतकालमें तुमने इसी प्रकारके विचारोंको उत्तेजन दिया है कि जिससे एक महत्त्वके नियमानुसार वैसे ही पुरुषोंका तुम्हारी ओर सहजमें आकर्षण हुआ है। वह महत्त्वका नियम हमें शिक्षा देता है कि-समान स्वभाववालोंका परस्परमें आकर्षण होता है । यद्यपि तुम इस समय वैसी आदतसे रहित हो और कदाचित् वैसी हँसी दिल्लगीको बुरा भी समझते हो तो भी पूर्वके विचारबलके कारण तुम ऐसी परिस्थितिमें आपड़े हो। इस वास्ते इसका उत्तरदायित्व तुम्हारे ऊपर है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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