Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 18
________________ जैनहितैषी - वे उसे पूर्वकी अपेक्षा अधिक असत्यवादी अन्यायी नीच और निंद्य बनाती हैं। पर इतनेहीसे उन विचारोंके परिणामका अन्त नहीं आता । जिस मनुष्यके पास वे विचार जाते हैं, उसका मस्तक स्वयं बुरे विचारोंसे भरा हुआ रहता है । इस कारण दूसरेके भेजे हुए सब विचारोंके वास्ते उसके मस्तिष्क में स्थान ही नहीं रहता । इसीसे वे विचार उसे पूर्वकी अपेक्षा अधिक नीच बनाते हैं और जगत्में घूमा करते हैं । वे विचार ऐसे दीख पड़ते हैं मानो कोई क्रोधी पुरुष उन्हें ग्रहण करनेका पात्र हो और उनकी राह देखता हो । घृणा और ईर्षासे भरे हुए ये विचार लाल और कालेरंगके भयंकर राक्षसोंकी आकृतिमें दीख पड़ते हैं और चहुँओर घूमते रहते हैं । जो मनुष्य अशिक्षित या क्रोधके वशीभूत हो, जिस पर जुल्म किया गया हो तथा जिसके दिलमें वैर लेनेकी इच्छा उठती हो उस अभागी मनुष्यके पास वे विचार शीघ्रतासे जाते हैं और उसे खून करनेके लिए उत्तेजित करते हैं । इसके बाद वह एकदम तेजी से आता है और अपने प्रतिपक्षी मनुष्यका खून कर डालता है । पृथ्वी पर इस खूनके बदले उसे फाँसीकी सजा दी जाती है । ५२४ जिस शरीरने कि उसका खून किया वह शरीर चाहे फाँसी पर लटका दिया जाय, चाहे कैदमें डाला जाय अथवा और किसी प्रकारसे नष्ट कर दिया जाय; परन्तु वास्तवमें उसकी अपेक्षा वह शिक्षित पुरुष कि जिसने घातकी और वैरके विचार जगत् में फैलाये हैं अधिक दंडनीय है । कारण कि निरक्षर और अशिक्षित पुरुषकी अपेक्षा पढ़े लिखे शिक्षित मनुष्यकी विचारशक्ति विशेष बलवती हुआ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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