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जैनहितैषी
इस धरातल पर कार्यकर्तागण अपने विचारानुसार काम करते हैं या उन पुरुषोंके विचारों पर अमल करते हैं कि जिन्हें विचारार्थ बहुत अवकाश मिला करता है। स्वयं विचार करनेमें ये प्रायः अशक्त हुआ करते हैं । संसारमें ऐसे भी अनेक मनुष्य हैं जो कि काम तो नहीं कर सकते; परन्तु विचार करते रहनेमें ही जिनका अधिकांश समय व्यतीत होता है। - जो आत्मविद्याके उपासक हैं उन्हें उचित है कि दोनों काम करें। भावार्थ-हमारा कर्तव्य है कि उत्तमोत्तम विचार किया करें
और उन्हें अमलमें लानेके लिए भी सदा तत्पर रहें । अपने विचारोंके विषयमें हमें बड़ी सावधानी रखनी चाहिए । यद्यपि प्रत्येक धर्म हमें इसी प्रकार आदेश करता है; परन्तु विरला ही धर्म इस बातको प्रगट करता है कि किस प्रकारसे वह काम करना इष्ट है। अतएव मैं आपका ध्यान इस बात पर आकर्षण करता हूँ कि हम अपने विचारोंके लिए कितने जबाबदार हैं और इन विचारोंसे हम कितना काम कर सकते हैं। - जो मनुष्य, गुप्त ज्ञानके अभ्यासी होते हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि विचार किसी न किसी आकृतिमें होते हैं। मानसिक भवनकी प्रकृति से अपने विचारके अनुसार भिन्न भिन्न रंगकी आकृतियाँ बनती हैं । ( इस स्थल पर यह प्रगट करना आवश्यक है - कि एक समय ऐसा था कि जब कोई मनुष्य साधारण जनताके विश्वासोंके विरुद्ध विचार दरसाता था तो उसे दूसरे मनुष्य अनेक प्रकारसे हैरान करते, जेलखानेमें डालते और कभी कभी तो उसे
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