Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 12
________________ ५१८ जैनहितैषी लावें । यही शिक्षा आश्रमके विद्यार्थियोंके दिलोंमें मौजूद है। ये अभीसे ही अपने तन मन और धनसे गरीबों और दुखियोंकी सहायता करते हैं। लड़कोंने आश्रमसे आध मीलके फासले पर एक पाठशाला बनाई है। उसमें सैंथाल जातिके असभ्य जंगली लड़के पढ़ते हैं। अध्यापनका कार्य स्वयं लडके ही संध्याको अपने खेलके समय जाकर करते हैं। पुस्तकें व पढ़ने लिखने आदिका सामान भी आश्रमके विद्यार्थी चन्दा करके उक्त पाठशालामें पढ़ने आनेवाले लड़कोंको देते हैं। इससे पाठक विचार सकते हैं कि उनके हृदयमें' अपने मूर्ख दुखी भाइयोंको विद्या पढ़ाकर सुखी करनेकी कितनी तीव्र इच्छा है-सुखी बनानेकी कितनी जबर्दस्त लालसा है। दैनिक पत्र-आश्रमसे प्रतिदिन एक दैनिकपत्र निकलता है। इसका सम्पादन विद्यार्थी स्वयं ही करते हैं। इसमें सिर्फ आश्रमसम्बन्धी समाचार निकलते हैं । कागजके एक ओर समाचार लिखकर वह कागज बोर्ड पर चिपका दिया जाता है। ___ वर्ष भरमें आश्रम ३ महीने बन्द रहता है। विद्यार्थियोंको छुट्टी दे दी जाती है। आषाढ़ महीनेके पहले पक्षमें और पूजाकी छुट्टीके बाद १५ दिन तक, इस तरह वर्षमें दोबार विद्यार्थी भरती किये जाते हैं । रोगी विद्यार्थियोंकी सेवाशुश्रूषाके लिए एक वैद्य और दो परिचर्या करनेवाले नियुक्त हैं। रोगी छात्रोंके लिए एक पृथक् हास्पिटल बना हुआ है। इस आश्रममें ठाठवाटका एक तरहसे अभाव है। संचालकोंका सादगी पर और मितव्ययता पर बहुत ध्यान रहता है। छात्रोंकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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