Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
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अब हम इस महान विभूति की जीविनी को ज्योतिष शास्त्रानुसार देखें कि जन्मकुण्डली के अनुसार आपका जीवनवृत्त कैसा था ?
जन्म - जैन वांगमय में उल्लेख है कि आप अषाढ़ शुक्ला 6 विक्रम पूर्व 541 (598 ई० पूर्व) को गर्भ में आये । यह माना जाता है कि पहले आप देवानन्दा नामक एक ब्राह्मणी के गर्भ में अवतरित हुए किंतु माता देवानन्दा एक अवतारी जीव का गर्भ सहन नहीं कर पा रही थीं इसलिए इन्द्रादि देवताओं ने आपका गर्भ प्रत्यावर्तन क्षत्रियाणि माता विशलादेवी की कोख में कर दिया। क्योंकि सभी अवतारी विभूतियाँ क्षत्राणियों की कोख से जन्मती रही है ।
ग्रीष्म ऋतु के चैत्र मास के द्वितीय पक्ष में त्रयोदशी के दिन पूरे नौ महीने सात दिन एवं 12 घण्टों के पूर्ण होने पर जबकि नक्षत्र अपनी उच्च स्थितियों को प्राप्त थे, प्रथम चन्द्रयोग से दिशाओं के समूह जब निर्मल थे, अंधकार- हीन और ज्योतिषविशुद्धकाल था सारे शकुन शुभ थे, अनुकूल दक्षिण पवन भूमि को स्पर्श कर रहा था, भूमि धान्य से परिपूर्ण थी और जब सारे मनुष्य एवं प्राणी प्रमुदित तथा क्रीड़ालीन थे उस -समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के चौथे चरण को अर्धरात्रि में क्षत्रीयकुण्ड ग्राम वैशाली
इक्ष्वाकु कुलभूषण, रघुकुलनन्दन, सूर्यवंशमणि, ज्ञातृवंशदीपक, सिद्धार्थकुमार, प्रियकारिणी-त्रिशलानन्दन, नन्दिवर्धनानुज, सुदर्शनासहोदर, वैशाली के राजकुमार के रूप सन्मति वर्धमान महावीर माता त्रिशला की दक्षिण कुक्षि से प्रसूत हुए ।
उस समय सूर्य की महादशा एवं शनि की अन्तर्दशा तथा बुध का प्रत्यन्तर चल
रहा था ।
इनके जीवन काल में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का बड़ा महत्व है । आपका गर्भप्रवेश, गर्भप्रत्यावर्तन, जन्म, गृह त्याग तथा केवलज्ञान प्राप्ति नामक पंचकल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही संघटित हुए थे ।
• इस जातक का जन्म क्योंकि शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में है इसलिए जातक गेहूँए रंग का होना चाहिए ।
वर्धमान महावीर की जन्मकुंडली
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चैत्र शुक्ला १३ ईसापूर्व ५६६ वर्ष
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