Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottar
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 13
________________ आत्माका निर्वाण कब होताहै अरु पिछे तिसकों कोन कहां ले जाताहै. ९६-९७-९८-९९ अभव्य जीवका निर्वाण नही अरु मोक्षमार्ग बंध नही. १००=१०१-१०१ आत्माका अमरपणां अरु तिसका कर्ता ईश्वर नही, १०३-१०४-१०५.-१०६ जीवकों पुनर्जन्म क्यों होताहै अरु तिसके बंध होनेमें क्या इलाजहै. १०७-१०८ आत्माका कल्याण तीर्थकर भगवान्में __ होने विषयक ब्यान. १०९-११० जिन पूजाका फल किस रीतिसे होताहै तिस विषयक समाधान. पुण्य पापका फल देनेवाला ईश्वर नही किंतु कर्म. ११२-११३-११४-११५-११६-११७-११८ जगत अकृत्रिमहै. जिन प्रतिमाकी पूजा विषयक ब्यान. १२०-१२१-१२२-१२३ देव अरु देवोंका भेद सम्यक्त्वी देवताकी साधु श्रावक भक्ति करे, शुभाशुभ कर्मके उदयमें देवता निमित्त है. १२४-१२५-१२६-१२७ संपतिराजा अरु तिसके कार्य. १२८-१२९ लब्धि अरु शक्ति. १३०-१३१-१३२-१३३-१३५ ईश्वरकी मनि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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