Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottar
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 12
________________ जैनीयोंए अपने स्वर्मिकों भ्राता सदृश जाननां. १६-१७ जैनीयोमें ज्ञाति. १०-२० परोपकार. ३४ ज्ञान. ३९-४०-४१. अछेरा. ५६ मुनियोंका धर्म. श्रावकोंका धर्म. मुनियोंका-अरु श्रावकोंका कोस लीये ___ धर्म पालनां, तिस विषयक ब्यान. महावीर स्वामीने दिखलाये हुवे धर्म विषयक पुस्तक. ६९-७०-७१-७२-७३ जैनमतके आगम (सिद्धांत) देवद्धि गणिक्षमाश्रमणके पहिले जैन मतके पुस्तक. ७५ महावीर स्वामीके समयमें जैनीराजें. ७६-७७ विशमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ अरु तिनकी पट्टे परंपरो. ७९-८० जैन बौद्ध मेंसें नहीं किंतु अलग चला आताहै बुद्धकी उत्पत्ति. आयुष बढता नही है. ९०-९१ उत्तराध्ययन सूत्र. ९४ निर्वाण शब्दका अर्थ . ९५ ८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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