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प्राक्कथन
जैन साहित्य के प्राचीन, दुर्लभ एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के प्रकाशन में भारतीय ज्ञानपीठ की अग्रणी भूमिका रही है। अपने स्थापना काल (1944 ई.) से अबतक इस संस्थान को भारतीय चिन्तन, संस्कृति और धर्म-दर्शन से सम्बन्धित संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़ आदि अनेक प्राचीन भाषाओं के सैकड़ों ग्रन्थों का वैज्ञानिक पद्धति से सम्पादन और अनुवाद के साथ प्रकाशन का श्रेय प्राप्त है। ये ग्रन्थ धर्म, दर्शन, न्याय और सिद्धान्त के ही नहीं, पुराण, काव्य, इतिहास, स्थापत्यकला, ज्योतिष आदि विषयों से भी सम्बद्ध हैं। इस कार्य में ज्ञानपीठ को समय-समय पर भारत के धुरन्धर जैन विद्वानों का निर्देशन और सम्पादन का लाभ प्राप्त हुआ है।
पिछले कुछ समय से मेरी यह भावना रही है कि भारतीय ज्ञानपीठ से एक ऐसी पुस्तक प्रकाशित हो, जिसमें वर्तमान सन्दर्भ में सामान्य जैन एवं जैनेतर पाठकों को जैनधर्म सम्बन्धी अर्थात् जैनधर्म, दर्शन, इतिहास, साहित्य, पुरातत्त्व और संस्कृति से सम्बद्ध सम्पूर्ण जानकारी एक जगह उपलब्ध हो। ___ यद्यपि इस तरह की कुछेक पुस्तकें पहले से ही प्रकाशित हैं, फिर भी आज के बदलते परिवेश में पाठक की नयी दृष्टि को ध्यान में रखकर उन्हीं प्राचीन आचार्यों और मनीषियों के चिन्तन को नये ढंग से प्रस्तुत करना आवश्यक प्रतीत होता है। ___यही ध्यान में रखकर प्रसिद्ध विद्वान प्रो. वृषभ प्रसाद जैन, लखनऊ से सलाह कर उनके सम्पादन में एक रूपरेखा तैयार की गयी और देश-विदेश के विषयविशेषज्ञ विद्वानों से सम्पर्क किया गया। फलस्वरूप यह पुस्तक सामान्य जन के साथ-साथ जैनधर्म के अध्येताओं के लिए भी उपयोगी होगी-ऐसा मेरा विश्वास
सद्गुरुओं का उपदेश हमारे जीवन को अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह रूपी सदाचारमयी जीवनपद्धति, से जीने का है। जिससे महाव्रत और
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