Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 24
________________ विश्व : विकास और हास १५ है । और विशेष प्रयोग के द्वारा भी । १६७१ ई० में भेड़ों के झुण्ड में अकस्मात् एक नयी जाति उत्पन्न हो गई । उन्हें आजकल 'अनेकन ' भेड़ कहा जाता है । यह जाति - मर्यादा के अनुकूल परिवर्तन है जो यदा-कदा यत्किंचित् सामग्री से हुआ करता है । प्रायोगिक परिवर्तन के नित नये उदाहरण विज्ञान जगत् प्रस्तुत करता ही रहता है । 1 अभिनव जाति की उत्पत्ति का सिद्धान्त एक जाति में अनेक व्यक्ति प्राप्त भिन्नताओं की बहुलता के आधार पर स्वीकृत हुआ है । उत्पत्ति स्थान और कुलकोटि की भिन्नता से प्रत्येक जाति में भेदबाहुल्य होता है । उन अवांतर भेदों के आधार पर मौलिक जाति की सृष्टि नहीं होती । एक जाति उससे मौलिक भेद वाली जाति को जन्म देने में समर्थ नहीं होती । जो जीव जिस जाति में जन्म लेता है, वह उस जाति में प्राप्त गुणों का विकास कर सकता है । जाति के विभाजक नियमों का अतिक्रमण नहीं हो सकता। इसी प्रकार जो जीव स्व-अर्जित कर्म - पुद्गलों को प्रेरणा से जिस जाति में जन्म लेता है, उसी (जाति) के आधार पर उसके शरीर संहनन, संस्थान, ज्ञान आदि का निर्णय किया जा सकता है, अन्यथा नहीं । बाहरी स्थितियों का प्राणियों पर प्रभाव होता है। किंतु उनकी आनुवंशिकता में वे परिवर्तन नहीं ला सकतीं । प्रो० डार्लिंगटन के अनुसार - "जीवों की बाहरी परिस्थितियां प्रत्यक्ष रूप से उनके विकास क्रम को पूर्णतया निश्चित नहीं करतीं। इससे यह साबित हुआ कि मार्क्स ने अपने और डार्विन के मतों में जो समानांतरता पायी थी, वह बहुत स्थायी और दूरगामी नहीं थी । विभिन्न स्वभावों वाले मानव प्राणियों के शरीर में बाह्य और आंतरिक भौतिक- प्रभेद मौजूद होते हैं । उनके भीतर के भौतिक - प्रभेद के आधार को ही जानुवंशिक या जन्मजात कहा जाता है । इस भौतिक आंतरिक प्रभेद के आधारों का भेद ही व्यक्तियों, जातियों और वर्गों के भेदों का कारण होता है । ये सब भेद बाहरी अवयवों में होने वाले परिवर्तनों के ही परिणाम हैं। इन्हें जीवधारी देह के पहलुओं के सिवाय बाहरी शक्ति नष्ट नहीं कर सकती । आनुवंशिकता के इस असर को अच्छे भोजन, शिक्षा अथवा सरकार के किसी भी कार्य से चाहे वह कितना ही उदार या क्रूर क्यों न हो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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