Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ जनदर्शन में तत्त्व-मीमांसा शरीर और बुद्धि । ये सारे निमित्त इन दोनों को प्रभावित करते प्रत्येक प्राणी आत्मा और शरीर का एक संयुक्त रूप होता है। प्रत्येक प्राणी को आत्मिक शक्ति का विकास और उसकी अभिव्यक्ति के निमित्तभूत शारीरिक साधन उपलब्ध होते हैं। _आत्मा सूक्ष्म शरीर का प्रवर्तक है और सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर का। बाहरी स्थितियां स्थूल शरीर को प्रभावित करती हैं, स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर को और सूक्ष्म शरीर आत्मा को-इन्द्रिय, मन या चेतन वृत्तियों को। ___ शरीर पौद्गलिक होते हैं- सूक्ष्म शरीर सूक्ष्म वर्गणाओं का होता है और स्थूल शरीर स्थूल वर्गणाओं का। १. आनुवंशिक समानता का कारण है-वर्गणा का साम्य । जन्म के आरंभ काल में जीव जो आहार लेता है, वह उसके जीवन का मूल आधार होता है। वे वर्गणाएं मातृ-पितृ सात्म्य होती हैं, इसलिए माता और पिता का उस पर प्रभाव होता है। सन्तान के शरीर में १. मांस, २. रक्त और ३. मस्तूलंग, (भेजा)-ये तीन अंग माता के और १. हाड, २. मज्जा और ३. केश-दाढी, रोम और नख -ये तीन अंग पिता के होते हैं । वर्गणाओं का साम्य होने पर भी आंतरिक योग्यता समान नहीं होती। इसलिए माता-पिता से पुत्र की रुचि, स्वभाव योग्यता भिन्न भी होती है। यही कारण है कि माता-पिता के गुण-दोषों का संतान के स्वास्थ्य पर जितना प्रभाव पड़ता है, उतना बुद्धि पर नहीं पड़ता। २ वातावरण भी पौद्गलिक होता है। पुद्गल पुद्गल पर असर डालते हैं । शरीर, भाषा और मन वर्गणाओं के अनुकूल वातावरण की वर्गणाएं होती हैं, उन पर उनका अनुकूल प्रभाव होता है और प्रतिकूल दशा में प्रतिकूल । आत्मिक शक्ति विशेष जागृत हो तो इसमें अपवाद भी हो सकता है। मानसिक शक्ति वर्गणाओं में परिवर्तन ला सकती है । कहा भी है "चित्तायत्तं धातुबद्धं शरीरं, स्वस्थे चित्ते बुद्धयः प्रस्फुरन्ति । तस्माच्चित्तं सर्वथा रक्षणीयं, तित्ते नष्टे बुद्धयो यांति नाशम् ॥" -यह धातुबद्ध शरीर चित्त के अधीन है। स्वस्थ चित्त में बुद्धि की स्फुरणा होती है । इसलिए चित्त को स्वस्थ रखना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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