Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 32
________________ जीवन-निर्माण २३ और सम्मूर्च्छन अमनस्क । गर्भज जीवों के मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच-ये दो वर्ग हैं । मानुषी गर्भ के चार विकल्प हैं-स्त्री, पुरुष, नपुंसक और बिम्ब । ओज की मात्रा अधिक, वीर्य की मात्रा अल्प, तब स्त्री होती है। ओज अल्प और वीर्य अधिक तब पुरुष होता है। दोनों के तुल्य होने पर नपुंसक होता है। वायु के दोष से ओज गर्भाशय में स्थिर हो जाता है, उसका नाम 'बिम्ब' है। वह गर्भ नहीं, किन्तु गर्भ का आकार होता है। वह आर्तव की निर्जीव परिणति होती है। ये निर्जीव बिम्ब जैसे मनुष्य-जाति में होते हैं, वैसे ही पशु-पक्षी जाति में भी होते हैं । निर्जीव अण्डे जो आज कल प्रचुर मात्रा में पैदा किये जाते हैं, उनकी यही प्रक्रिया हो सकती है। गर्भाधान की कृत्रिम पद्धति गर्भाधान की स्वाभाविक पद्धति स्त्री-पुरुष का संयोग है। कृत्रिम रीति से भी गर्भाधान हो सकता है। 'स्थानांग' में उसके पांच कारण बतलाए हैं। उन सबका सार कृत्रिम रीति से वीर्यप्रक्षेप है। गर्भाधान के लिए मुख्य बात वीर्य और आर्तव के संयोग की है। उसकी विधि स्वाभाविक और कृत्रिम-दोनों प्रकार की हो सकती है। गर्भ की स्थिति तिर्यञ्च की गर्भ-स्थिति जघन्य अन्तर्-मुहूर्त और उत्कृष्ट आठ वर्ष की है। मनुष्य की गर्भ-स्थिति जघन्य अन्तर्-मुहूर्त और उत्कृष्ट बारह वर्ष की है। कायभवस्थ की गर्भ-स्थिति जघन्य अंतरमुहर्त और उत्कृष्ट चौबीस वर्ष की है। गर्भ में बारह वर्ष बिता कर मर जाता है और फिर जन्म लेकर और बारह वर्ष वहां रहता है। इस प्रकार काय-भवस्थ अधिक से अधिक चौबीस वर्ष तक गर्भ में रह जाता है। योनिभूत वीर्य की स्थिति जघन्य अंतर-मुहूर्त और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त की होती है। गर्भ संख्या एक स्त्री के गर्भ में एक-दो यावत् नौ लाख तक जीव उत्पन्न हो सकते हैं। किंतु वे सब निष्पन्न नहीं होते। अधिकांश निष्पन्न हुए बिना ही मर जाते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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