Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 41
________________ जनदर्शन में तत्त्व - मीमांसा ३२ इसी प्रकार प्रत्येक वस्तु के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, शब्द और संस्थान का ज्ञान सहायक - सामग्री - सापेक्ष होता है । अतीन्द्रिय ज्ञान परिस्थिति की अपेक्षा से मुक्त होता है । उसकी ज्ञप्ति में देश, काल और परिस्थिति का व्यवधान या विपर्यास नहीं आता, इसलिए उससे वस्तु के मौलिक रूप की सही-सही जानकारी मिलती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112