Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 101
________________ ९२ २. वाचिक व्यापार । ३. मानसिक व्यापार । उत्थान आदि इन्हीं के प्रकार हैं। योग शुभ और अशुभदोनों प्रकार का होता है । आस्रव चतुष्टय में अप्रवृत्ति शुभ योग और आस्रव - चतुष्टय में प्रवृत्ति अशुभ योग । शुभ योग तपस्या है, सत्प्रवृत्ति है । वह उदीरणा का हेतु है । क्रोध, मान, माया और लोभ की प्रवृत्ति अशुभ योग है। उससे भी उदीरणा होती ह । वेदना जैनदर्शन में तत्त्व-मीमांसा गौतम - 'भगवन् ! अन्ययूथिक कहते हैं - सब जीव एवंभूत वेदना (जैसे कर्म बांधा वैसे ही ) भोगते हैं - यह कैसे है ?" भगवान् - ' गौतम ! अन्ययूथिक जो एकान्त कहते हैं, वह मिथ्या है । मैं इस प्रकार कहता हूं - कुछ जीव एवंभूत - वेदना भोगते हैं और कुछ अन एवंभूत वेदना भी भोगते हैं ।' 1 यह कैसे ? " हुए हैं । गौतम - 'भगवन् ! भगवान् – 'गौतम ! जो जीव किए हुए कर्मों के अनुसार ही वेदना भोगते हैं, वे एवंभूत वेदना भोगते हैं और जो जीव किए कर्मों से अन्यथा भी वेदना भोगते हैं वे अन एवंभूत वेदना भोगते गौतम ने पूछा- 'भगवन् ! नैरयिक जीव कितने प्रकार के पुद्गलों का भेद और उदीरणा करते हैं ? भगवान् ने कहा - " गौतम ! नैरयिक जीव कर्म - पुद्गल की अपेक्षा से अणु और बाह्य ( सूक्ष्म और स्थूल) इन दो प्रकार के पुद्गलों के भेद और उदीरणा करते हैं। इसी प्रकार चय, उपचय, वेदना, निर्जरा, अपर्वतन, संक्रमण, निधत्ति और निकाचन करते हैं । गौतम ने पूछा- 'भगवन् ! नैरयिक जीव तैजस और कार्मण पुद्गलों का ग्रहण अतीत काल में करते हैं, वर्तमान काल में करते हैं या अनागत काल में करते हैं ?' भगवान् ने कहा- 'गौतम ! नैरयिक जीव तैजस और कार्मण पुद्गलों का ग्रहण अतीत काल में नहीं करते, वर्तमान काल में करते हैं । अनागत काल में नहीं करते । गौतम ने पूछा- 'भगवन् ! नैरयिक जीव अतीत में ग्रहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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