Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 102
________________ कर्मवाद किए हुए तैजस और कार्मण पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? वर्तमान में ग्रहण किए जाने वाले पुदगलों की उदीरणा करते हैं ? ग्रहण-समय पुरस्कृत-वर्तमान से अगले समय में ग्रहण किए जाने वाले पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ?' भगवान् ने कहा--'गौतम ! वे अतीत काल में ग्रहण किए हुए पुद्गलों की उदीरणा करते हैं। वे न वर्तमान काल में ग्रहण किए जाने वाले पुदगलों की उदीरणा करते हैं और न ग्रहण-समय-पुरस्कृत पुद्गलों की उदीरणा करते हैं।' इसी प्रकार वेदना और निर्जरा भी अतीत काल में गृहीत पुद्गलों की होती है। निर्जरा संयोग का अंतिम परिणाम वियोग है। आत्मा और परमाणु —ये दोनों भिन्न हैं। वियोग में आत्मा आत्मा है और परमाणु परमाणु । इनका संयोग होता है, तब आत्मा रूपी कहलाती है और परमाणु कर्म । कर्म-प्रायोग्य परमाणु आत्मा से चिपट कर्म बन जाते हैं । उस पर अपना प्रभाव डालने के बाद वे अकर्म बन जाते हैं। अकर्म बनते ही वे आत्मा से विलग हो जाते हैं। इस विलगाव की दशा का नाम है-निर्जरा। निर्जरा कर्मों की होती है-यह औपचारिक सत्य है। वस्तुसत्य यह है कि कर्मों की वेदना-अनुभूति होती है, निर्जरा नहीं होती। निर्जरा अकर्म की होती है। वेदना के बाद कर्म-परमाणओं का कर्मत्व नष्ट हो जाता है, फिर निर्जरा होती है। __कोई फल डाली पर पककर टूटता है और किसो फल को प्रयत्न से पकाया जाता है। पकते दोनों हैं, किंतु पकने की प्रक्रिया दोनों की भिन्न है। जो सहज गति से पकता है, उसका पाक-काल लम्बा होता है और जो प्रयत्न से पकता है, उसका पाक-काल छोटा हो जाता है। कर्म का परिपाक भी ठीक इसी प्रकार होता है। निश्चित काल-मर्यादा से कर्म-परिपाक होता है, उसकी निर्जरा को विपाकी-निर्जरा कहा जाता है। यह अहेतुक निर्जरा है, इसके लिए कोई नया प्रयत्न नहीं करना पड़ता, इसलिए इसका हेतु न धर्म होता है और न अधर्म । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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