Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 109
________________ जैनदर्शन में तत्त्व-मीमांसा वर्ष १९६०-६१ के प्रश्न पत्र १. "दार्शनिकों का ध्येयवाद" भविष्य को प्रेरक मानता है और वैज्ञानिकों का "विकासवाद" अतीत को। इसकी समीक्षा कीजिए। १० २ प्राणियों के उत्पत्ति-स्थान, संख्या व कुल-कोटि का वर्णन करो। १० ३. वनस्पति के जीवों में अव्यक्त दस संज्ञाओं का उदाहरण सहित उल्लेख करो। ४. मनुष्य के जीवन पर प्रभाव के निमित्त कौन-कौन-से हैं ? वर्णन करो। ५. गर्भ की परिभाषा, वर्ग, मानुषी गर्भ के विकल्प, स्थिति, प्रभाव ___ आदि को अपने शब्दों में उल्लेखित करो। ६. जीव के चवदह भेद और उनका आधार क्या है ? ७. क्रियावाद और अक्रियावाद पर अपने विचार प्रकट करो। ८. आत्मा के अस्तित्व के साधक तर्क क्या हैं ? वर्णन करो? ९. इन विषयों पर लघुकाय निबन्ध लिखें : १. पुनर्जन्म, २. अन्तरकाल, ३. जातिस्मृति ज्ञान, ४. अतीन्द्रिय ज्ञान, ५. मुक्त आत्मा। वर्ष १९६१-६२ के प्रश्न पत्र १. वस्तुएं कितने प्रकार की होती हैं व उसके परिणमन की क्या प्रक्रिया २. 'लेश्या' का अर्थ, प्रकार, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श पर लघु निबन्ध लिखें। ३. कर्म-मुक्ति की क्या प्रक्रिया है व मुक्त होने वाले साधकों की कितनी श्रेणियां हैं ? ४. 'कर्म की उदीरणा' पर जैन सिद्धान्त के संबंध में अपने विचार प्रकट करें। ५. टिप्पणी करें (क) पुरुषार्थ भाग्य को बदल सकता है। (ख) धर्म और पुण्य पृथक् तत्त्व हैं। (ग) पुद्गल हेतु व पुद्गल परिणाम हेतु कर्मोदय । (घ) बंध और उदय का अन्तर काल । (ङ) आत्मा और कर्म का संबंध । ६. अस्तित्व सिद्धि के प्रकारों के संदर्भ में जीव-अजीव का अस्तित्व सिद्ध करो । ७. 'जाति स्मृति' ज्ञान क्या है ? विवेचन कीजिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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