Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 61
________________ ५२ जैनदर्शन में तत्त्व - मीमांसा लोक भरा है । स्थूल जीव आधार बिना नहीं रह सकते । इसलिए वे लोक के थोड़े भाग में हैं । एक- एक काय में कितने जीव हैं, यह उपमा के द्वारा समझाया गया है एक हरे आंवले के समान मिट्टी के ढेले में जो पृथ्वी के जीव हैं, उन सब में से प्रत्येक का शरीर कबूतर जितना बड़ा किया जाए तो वे एक लाख योजन लम्बे-चौड़े जंबूद्वीप में नहीं समाते । पानी की बूंद में जितने जीव हैं, उनमें से प्रत्येक का शरीर सरसों के दाने के समान बनाया जाए तो वे उक्त जम्बूद्वीप में नहीं समाते । " एक चिनगारी के जीवों में से प्रत्येक के शरीर को लीख के समान किया जाए तो वे भी जम्बूद्वीप में नहीं समाते । " नीम के पत्ते को छूने वाली हवा में जितने जीव हैं, उन सब में से प्रत्येक के शरीर को खस-खस के दाने के समान किया जाए तो वे जम्बूद्वीप में नहीं समाते । शरीर और आत्मा शरीर और आत्मा का क्या सम्बन्ध है ? मानसिक विचारों का हमारे शरीर तथा मस्तिष्क के साथ क्या सम्बन्ध है ? इस प्रश्न के उत्तर में तीन वाद प्रसिद्ध हैं १. एक पाक्षिक क्रियावाद (भूत - चैतन्यवाद ) | २. मनोदैहिक - सहचरवाद । ३. अन्योन्याश्रयवाद । भूत - चैतन्यवादी केवल शारीरिक व्यापारों को ही मानसिक व्यापारों का कारण मानते हैं । उनकी सम्मति में आत्मा शरीर की उपज है । मस्तिष्क की विशेष कोष्ठ-त्रिया ही चेतना है । ये प्रकृतिवादी भी कहे जाते हैं । आत्मा को प्रकृति-जन्य सिद्ध करने के लिए ये इस प्रकार अपना अभिमत प्रस्तुत करते हैं । पाचन आमाशय की क्रिया का नाम है | श्वासोच्छ्वास फेफड़ों की क्रिया का नाम है । वैसे ही चेतना (आत्मा) मस्तिष्क की कोष्ठ - क्रिया का नाम है । यह । आत्मवादी इसका निरसन कोष्ठ की क्रिया है।' इसमें किया गया है । आमाशय भूत - चैतन्यवाद का एक संक्षिप्त रूप है इस प्रकार करते हैं- चेतना मस्तिष्क के व्यर्थक क्रिया शब्द का समानार्थक प्रयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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