Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 63
________________ जनदर्शन में तत्त्व-मीमांसा ह आती है कि -"मैं अपनी इच्छा के अनुसार चलता हूं--मेरे भाव रीरिक परिवर्तनों को पैदा करने वाले हैं" इत्यादि प्रयोग नहीं कये जा सकते। _ 'मनोदैहिक-सहचरवाद' के अनुसार मानसिक तथा शारीरिक व्यापार परस्पर सहकारी हैं, इसके सिवाय दोनों में किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं। इस वाद का उत्तर अन्योन्याश्रयवाद है। उसके मनुसार शारीरिक क्रियाओं का मानसिक व्यापारों पर एवं मानसिक व्यापारों का शारीरिक क्रियाओं पर असर होता है। जैसे १. मस्तिष्क की बीमारी से मानसिक शक्ति दुर्बल हो जाती २. मस्तिष्क के परिमाण के अनुसार मानसिक शक्ति का विकास होता है। साधारणतया पुरुषों का दिमाग ४६ से ५० या ५२ औंस तक का और स्त्रियों का ४४-४८ औंस तक होता है। देश-विदेश के अनुसार इनमें कुछ न्यूनाधिकता भी पायी जाती है। अपवाद रूप असाधारण मानसिक शक्ति वालों का दिमाग औसत परिमाण से भी नीचे दर्जे का पाया गया है। पर साधारण नियमानुसार दिमाग के परिमाण और मानसिक विकास का सम्बन्ध रहता है। ब्राह्मीघत आदि विविध औषधियों से मानसिक विकास को सहारा मिलता है। ४. दिमाग पर आघात होने से स्मरण-शक्ति क्षीण हो जाती ५. दिमाग का एक विशेष भाग मानसिक शक्ति के साथ सम्बन्धित है, उसकी क्षति से मानसिक शक्ति में हानि होती है। मानसिक क्रिया का शरीर पर प्रभाव १. निरन्तर चिन्ता एवं दिमागी परिश्रम से शरीर थक जाता २. सुख-दुःख का शरीर पर प्रभाव होता है। ३. उदासीन वृत्ति एवं चिंता से पाचन-शक्ति मंद हो जाती है, शरीर कृश हो जाता है। क्रोध आदि से रक्त विषाक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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