Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 29
________________ जैनदर्शन में तत्त्व-मीमांसा से जो शक्ति बिखर जाती है, वह ध्यान से केन्द्रित होती है। इसलिए आत्म-विकास में मनगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति का बड़ा महत्त्व है। ___ मानसिक अनिष्ट चिन्तन से प्रतिकूल वर्गणाएं गृहीत होती हैं, उनका स्वास्थ्य पर हानिजनक प्रभाव होता है। प्रसन्न दशा में अनु कूल वर्गणाएं अनुकूल प्रभाव डालती हैं। क्रोध आदि वर्गणाओं की भी ऐसी ही स्थिति है। ये वर्गणाएं समूचे लोक में भरी पड़ी हैं। इनकी बनावट अलग-अलग ढंग की होती है और उसके अनुसार ही ये निमित्त बनती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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