Book Title: Jain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Jagruti Dilip Sheth Dr

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Page 9
________________ [8] 26 37 २५ 40 47 व्यञ्जनावग्रह और अर्थावग्रह का सही अर्थघटन 35 श्रुतज्ञान व मतिज्ञान के क्रम एवं विषय प्रमाणलक्षण मतिप्रकार परोक्ष प्रमाण इन्द्रियप्रत्यक्ष स्मृति प्रत्यभिज्ञा तर्क अनुमान उपसंहार 3. जैनदर्शन में केवलज्ञान 47-64 केवलज्ञान के स्वरूप की स्थिर हई जैन मान्यता सर्वज्ञत्व की सिद्धि के लिए दिये गये प्रमुख तर्क सर्वज्ञत्व की सिद्धि के लिए दिये गये तर्कों का खोखलापन 'केवलज्ञान' पद का अर्थ केवलज्ञान पर सर्वज्ञत्व का आरोप क्यों ? वीतरागता और धर्मज्ञता के विरुद्ध सर्वज्ञत्व की हानिकर प्रतिष्ठा का प्रतिकार 56 सर्वज्ञत्व और कर्मसिद्धान्त का परस्पर विरोध 57 ज्ञान का आनन्त्य स्वतः ज्ञेयानन्त्यनिरपेक्ष महावीर को सर्वज्ञ मानने से धर्महानि निर्मोही का अल्पज्ञेयों का ज्ञान भी पूर्णज्ञान अन्य तर्कदोष सर्वज्ञ का अर्थ क्या होना चाहिए उपसंहार 47 48 59 60 61 62 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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