Book Title: Jain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Jagruti Dilip Sheth Dr

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Page 34
________________ जैनदर्शन में श्रद्धा (सम्यग्दर्शन) की विभावना 63. एकदेशकर्मसंक्षयलक्षणा निर्जरा । सर्वार्थसिद्धि, १.४ 64. तपसा निर्जरा च । तत्त्वार्थसूत्र, ९.३ 65. वही, ९.१९ 66. वही, ९.२० 67. बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः । वही, १०.२ 68. जादं सयं समत्तं णाणमणंतत्थवित्थडं विमलं। रहियं तु ओग्गहादिहिं सुहं ति एगंतियं भणियं ॥ जं केवलं ति णाणं तं सोक्खं परिणामं च सो चेव । प्रवचनसार, १.५९-६० ततः कुतः केवल-सुखयोर्व्यतिरेकः । अतः सर्वथा केवलं सुखमैकान्तिकमनुमोदनीयम् । प्रवचनसार-तत्त्वदीपिकाटीका, गाथा १.६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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