Book Title: Jain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Jagruti Dilip Sheth Dr

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Page 82
________________ लेखक परिचय डॉ. नगीनदास जीवनलाल शाह का जन्म सन 1931 में सुरेन्द्रनगर जिले के सायला शहर में हुआ था। वे एल.डी. इन्स्टिटयूट ऑफ इन्डोलोजी (अहमदाबाद) के अध्यक्षपद पर थे। अब निवृत्त हैं। आप संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान हैं। भारतीय तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में आप का प्रदान बहुमूल्य है। आप के द्वारा पं. सुखलालजी के मार्गदर्शन में तैयार किया एवं गुजरात युनिवर्सिटी द्वारा मान्य महानिबन्ध Akalanka's Criticism of Dharmakirti's Philosophy - A Study 1968 में प्रकाशित हुआ है, जिसकी आन्तरराष्ट्रीय विद्वानों ने भूरि प्रशंसा की है। इसके अतिरिक्त आंग्ल भाषा में आप ने तीन बहुमूल्य एवं स्वतन्त्र ग्रन्थ की रचना कर दार्शनिक जगत की अनुपम सेवा की है। ये तीन ग्रन्थ है : (1) A Study of Nyayamanjari, a Mature Sanskrit Work on INDIAN LOGIC (in three parts), (2) Essays in Indian Philosophy and (3) Samantabhadra's Aptamimamsa - Critique of an Authority. इसके अतिरिक्त आपने मुनिश्री न्यायविजयजी का विशालकाय प्रसिद्ध गुजराती ग्रंथ 'जैनदर्शन' का विशद अंग्रेजी अनुवाद (Jaina Philosophy and Religion) किया है। आपने गुजराती में (1) साङ्ख्ययोग, (2) न्याय-वैशेषिक, (3) बौद्धधर्मदर्शन, (4) भारतीय तत्त्वज्ञान-केटलीक समस्या जैसे चार चिन्तनप्रधान ग्रन्थ लिखकर दार्शनिकों की बड़ी प्रीति सम्पादन की है। साथ ही आप के द्वारा किया गया संस्कृत ग्रंथ न्यायमञ्जरी का गुजराती अनुवाद (पांच भागों में) भारतीय तत्त्वज्ञान के गुजरातीभाषी अध्यापकों और अध्येताओं को अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है। तदुपरान्त, न्यायमञ्जरी की हस्तप्रत में उपलब्ध एक मात्र टीका न्यायमञ्जरीग्रन्थिभङ्ग जो अब तक अप्रकाशित थी उसका आपने उच्चस्तरीय सम्पादन संशोधन किया जिसे ला.द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर ने प्रकाशित किया है। महामहोपाध्याय विधुशेखर भट्टाचार्यजी की Basic Conception of Buddhism नामक पुस्तक का विशद गुजराती अनुवाद भी आपने दिया है। निवृत्ति के बाद भी आप सदैव मनन-चिन्तनशील दार्शनिक ग्रन्थों का लेखन सम्पादन एवं अनुवाद का कार्य कर रहे हैं। आपने स्वतन्त्र रूप से संस्कृत-संस्कृति ग्रन्थमाला की स्थापना की है। इस ग्रन्थमाला से आपके द्वारा निर्मित आठ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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