Book Title: Jain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Jagruti Dilip Sheth Dr

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Page 41
________________ जैनदर्शन में सम्यग्दर्शन मतिज्ञान केवलज्ञान सी जाति की है, उसके विशेष गुण क्या हैं, इन विशेषताओं से रहित उस वस्तु का जो केवल सामान्य ज्ञान होता है वह अवग्रह है। उदाहरणार्थ, गहन अन्धकार में पैर में कोई स्पर्श होने से 'कुछ है ऐसा ज्ञान होता है। इस ज्ञान में पता नहीं लगता कि कौन सी वस्तु का स्पर्श हुआ है। ऐसा अव्यक्त ज्ञान अवग्रह कहा जाता है। अवगृहीत विषय क्या है यह विशेषतः जानने के लिए शुरू हुई विचारणा जो अनेक विकल्प (alternatives) उपस्थित करती है वह ईहा है। उदाहरणार्थ, जो स्पर्शानुभव हुआ उसमें लम्बाई का, वृत्ताकार-नलाकार का अनुभव है। स्पर्शानुभव का सामान्य विश्लेषण कुछ ऐसे सामान्य धर्म बताते हैं जो एकाधिक वस्तुओं में सम्भवित हो सकते हैं। ये वस्तुएँ अनुभव के सम्भवित विषयों के रूप में विकल्पतः उपस्थित होती हैं। रज्जु और सर्प विकल्प के रूप में उपस्थित होते हैं। रज्जु होगा या सर्प ? इस प्रकार ईहा संशय सदृश प्रतीत होती है। परन्तु ईहा में विशेष निश्चय की ओर प्रवणता-गति होती है।।4 ईहा पश्चात् उसके द्वारा उपस्थित विकल्पोंका परीक्षण करके, स्पर्शानुभव का विशेष विश्लेषण करके, उस के आधार पर एक के बाद एक विकल्प को दूर करते हुए (=अवाय) अन्ततः एक ही विकल्प को निर्णय के रूप में स्थापित करना अवाय है। 5 सर्प के स्पर्श में चिकनाई होती है, यह स्पर्श तो खुरदरा है। सर्प होता तो सरके बिना या फुफकार किये बिना नहीं रहता अतः यह सर्प का स्पर्श नहीं है। इस प्रकार सर्प का विकल्प दर करके वह रज्जु का ही स्पर्श है, रज्जु अनुभव का विषय है, इस निर्णय पर आना अवाय है। पश्चात् अवाय रूप निश्चय कुछ समय तक टिका रहता है, जिसे धारावाही प्रत्यक्ष भी कहा जाता है, किन्तु बाद में इन्द्रिय का अन्य विषय के साथ सन्निकर्ष होने से या मन का विषयान्तर होने से निश्चय लुप्त हो जाता है, लेकिन अपना संस्कार छोड़ जाता है। यह संस्कार भविष्य में योग्य निमित्त प्राप्त होने से जाग्रत होकर पूर्व में जिस विषय का निश्चयात्मक अनुभव किया था उसका स्मरण कराता है। इस प्रकार अन्तिम निश्चय का धारा रूप में कुछ काल टिका रहना, इस निश्चय ने अपने पीछे छोडे संस्कार का चित्त में पड़ा रहना, इस संस्कार के जाग्रत होने से स्मरण होनाइन तीनों व्यापारों का धारणा में समावेश किया जाता है ।16 मतिज्ञान के अवग्रहादि भेदों में अव्यवस्था एवं मनन ___उमास्वाति के अनुसार, जैसा हमने देखा, इन्द्रियप्रत्यक्ष ही एक मात्र इन्द्रियनिमित्त मतिज्ञान है, जब कि शेष मनोनिमित्त मतिज्ञान हैं। उमास्वाति पाँच बाह्येन्द्रियजन्य पाँच प्रत्यक्षोंमें प्रत्येक के अवग्रहादि चार भेद मानते हैं, अत: बीस भेद हुए। इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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