Book Title: Jain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Jagruti Dilip Sheth Dr
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इन्द्रियार्थसन्निकर्षावग्रह, 36 इर्यापथिक कर्मबन्ध, 18 ईश्वर, 54 56
ईश्वरकृष्ण, 53
ईहा, 31-32, 34
उपनिषद्, 3, 7, 10, 26, 51
उपनिषविद्या, 4
उपमान, 40
उपाध्ये, ए. एन., 16
उमास्वाति 11, 30-31, 34, 37
कषाय, 18-19
कार्ल मार्क्स,
कालद्रव्य, 17
कालाम, 7
ऊह 28
ऋग्वेद, 2
ऋषभदेव 2-3 एकत्ववितर्काविचारशुक्लध्यान, 47
कठोपनिषद्, 13
कर्म, और आत्मा का सम्बन्ध, 15 - 16,
चेतोपर्यज्ञान, 26
पौगलिक, 15 - 16, के रंग, 15 कर्मसिद्धान्त, सर्वज्ञत्व का विरोधी 57 59 छान्दोग्योपनिषद्, 4
1
4
जैनदर्शन में सम्यग्दर्शन मतिज्ञान केवलज्ञान
क्षण, 17, और पर्याय, 13
क्षणिकवाद, 13 गुप्ति, 19
गुरु, 7 गोशालक, 55, 58
गौतम (न्यायसूत्रकार), 55
ग्रन्थि, 1-2
ग्रन्थिभेद,
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चक्रधर, 2
चतुर्व्यूह, 12 चार्वाक, 4
चित्त, और जैन आत्मा, 13, 15 चित्तप्रसाद, 8-9
चित्तशुद्धि, 6-9
चित्तवृत्ति, 50, 55
चिन्ता, 27-28
जिन,
जीव, 12-16
जीवन्मुक्त, 54-55
जीवरंग, 15
जीववर्ण, 15
कुन्दकुन्द, 51
कुमारिल, 56
जैन आगम, 2-3
1-3
केवलज्ञान, 26, सर्वज्ञत्व के साथ अभेद, जैन धर्मसम्प्रदाय, 47, विशुद्ध ज्ञान, 50, जैन सात तत्त्व, 12-13 अक्लिष्टचित्तवृत्ति के साथ अभेद, ज्ञाताधर्मकथा, 33 50, विषयाकारशून्य ज्ञान, 50, ज्ञातृपुत्र, 3
केवल आत्मा का ज्ञान, 51 केवलज्ञान, 26
झीमर, प्राध्यापक, तत्त्वज्ञान 3
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